Unknown Mystery Of Mehrangarh Fort: भारत अपने इतिहास के लिए पूरी दुनिया भर में जाना जाता है जब इतिहास के बात होती है तो राजस्थान और राजस्थान के किलो का अपना एक अलग ही महत्व दिखाई देता है। आज हम आपको एक ऐसे अनोखे किले के बारे में बताने जा रहे हैं जहां से पूरे पाकिस्तान को देखा जा सकता है।
हम बात कर रहे हैं राजस्थान के जोधपुर में स्थित मेहरानगढ़ किले के बारे में। मेहरानगढ़ किले से जुड़े रहस्य अपने आप में अनोखे हैं, आज हम आपको मेहरानगढ़ किले से जुड़े पांच ऐसे रहस्य के बारे में बताएंगे जो आपने पहले नहीं सुना होगा।
Unknown Mystery Of Mehrangarh Fort: मेहरानगढ़ किले से जुड़े रहस्य।
1.किले का निर्माण
मेहरानगढ़ किला एक बुलंद पहाड़ी पर एक 150 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पहाड़ी के बिल्कुल ऊपर बसे होने के कारण ये किला राजस्थान राज्य के सबसे खूबसूरत किलो में से एक है।
माना जाता है की इस किले की नींव 15 वीं शताब्दी में राव जोधा ने रखी थी। लेकिन इसका निर्माण कार्य महाराजा जसवंत सिंह ने पूरा करवाया था। यह किला भारत के प्राचीनतम और विशाल किलो में से एक है।
मेहरानगढ़ किले को भारत के समृद्धिशाली अतीत का प्रतीक माना जाता है इस किले की दीवारों की परिधि 10 किलोमीटर फैली है इनकी ऊंचाई 20-120 फीट तथा चौड़ाई 12-70 फीट तक है।
2.साधु का श्राप
जब राव जोधा ने मेहरानगढ़ किला बनाने का फैसला किया, तो उन्हें पहाड़ी पर रहने वाले साधु चीरिया नाथजी को स्थानांतरित करना पड़ा। नाथजी ने राव जोधा को श्राप दिया कि किले को पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा।
इस श्राप को कम करने के लिए, राव जोधा ने किले के पास एक घर और मंदिर बनवाया और नए शहर का नाम “जोधपुर” रखा।
3.किले के 8 द्वार
इसके परकोटा में दुर्गम रास्तों वाले 7 संरक्षित दुर्ग बने हुए हैं, आठ द्वारों और अनगिनत बुर्जों से युक्त यह जिला ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा है वैसे तो इस किले के सात ही द्वार हैं लेकिन कहते हैं कि इसका आठवां द्वार भी है जो रहस्यमई है।
किले के प्रथम द्वार पर हाथियों के हमले से बचाव के लिए नुकीली किले लगवाए गए थे. इस किले के अंदर भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दीवारें और जालीदार खिड़कियां हैं जिनमें मोती महल, फूल महल, शीश महल, सुरेश खान और दौलत खाना बेहद खास है।
4.चामुंडा माता का मंदिर
किले के पास चामुंडा माता का मंदिर भी है जिसे राव जोधा ने 1460 ई में बनवाया था राव जोधा को चामुंडा माता पर अथाह श्रद्धा थी। चामुंडा माता जोधपुर के शासको की कुलदेवी रही हैं। राव जोधा ने 1460 ई में मेहरानगढ़ किले के पास चामुंडा माता का मंदिर बनवाया था और मूर्ति की स्थापना भी की थी।
इतना ही नहीं यह भी माना जाता है कि 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान सबसे पहले जोधपुर को निशाना बनाया गया था लेकिन माता चामुंडा की कृपा से यहां के लोगों का बाल भी बाका नहीं हुआ था। माता चामुंडा के मंदिर नवरात्रि के दिनों में विशेष पूजा भी की जाती है।
5.हाथों के निशान
कहा जाता है कि किले के दूसरे दरवाजे पर युद्ध के दौरान तोपों के गोले के निशान आज भी मौजूद है। इस किले के दीवारों पर रखे भीमकाय तोपों से आसपास के भूभाग को सुरक्षित रखा जाता था। इतना ही नहीं ये भी कहा जाता है कि मेहरानगढ़ किले का मुख्य द्वार जिसे लोहे का पोल कहा जाता है, पर आज भी छोटे-छोटे हाथों के निशान हैं।
मान्यता है कि ये हाथों के निशान महाराजा मानसिंह के रानियों की है जो 1843 में महाराजा मानसिंह की चिता पर सती हो गई थी। ये हाथों के निशान पुराने रीति रिवाज और राजसी महिलाओं के बलिदानों की याद दिलाते हैं।
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