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Virtual Autism Symptoms in Kids- आखिर क्या है वर्चुअल ऑटिज्म और बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है इसके खतरे से…

Virtual Autism Symptoms in Kids- आखिर क्या है वर्चुअल ऑटिज्म और बच्चों को कैसे बचाया जा सकता है इसके खतरे से…

Virtual Autism Symptoms in Kids

Virtual Autism Symptoms in Kids- भारत ही नहीं पूरे विश्व के अधिकतर घरों में छोटे बच्चे रहते ही हैं। आज के टेक्नोलॉजी वाले समय में अधिकतर लोगों की एक बड़ी समस्या है कि उनका बच्चा मोबाइल कैसे कम देखे।

ऐसे में अगर आपके घर में कोई छोटा बच्चा है और वह बहुत ज्यादा मोबाइल या डिजिटल गैजेट्स का इस्तेमाल कर रहा है तो आपको ध्यान देने की जरूरत है। आपके बच्चे को डिजिटल गैजेट्स की वजह से वर्चुअल ऑटिज्म की गंभीर समस्या हो सकती है।

इस पोस्ट में हम इसी वर्चुअल ऑटिज्म जैसी गंभीर समस्या और उसके कुछ कारगर उपायों के बारे में बता रहे हैं। आज के डिजिटल समय में इस गंभीर समस्या से बचाव बहुत जरूरी है।

Virtual autism symptoms in kids

Virtual Autism Symptoms in Kids-बच्चों को कैसे बचाएं वर्चुअल ऑटिज्म के खतरे से !

नई लेकिन गंभीर समस्या है वर्चुअल ऑटिज्म

यह समस्या आमतौर पर छोटे बच्चो में अधिक देखने को मिल रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि छोटे बच्चों का दिमाग तेजी से डेवलप हो रहा होता है। वह लगातार नई नई एक्टिविटी को देखते और सीखने की कोशिश में लगे रहते हैं।

ऐसे में यदि एक बार भी वह स्मार्टफोन में कुछ अनोखा वीडियो या गेम देख लें तो बार बार ऐसे कार्टून वीडियो या गेम खेलने की जिद करने लगते हैं। पेरेंट्स भी ज्यादातर खुद बच्चों के साथ खेलने की बजाय उन्हें ये डिजिटल गैजेट दे देते हैं जिससे बच्चे उनका पीछा छोड़ दें।

Virtual autism symptoms in kids

कहने और सुनने में तो यह बहुत ही सामान्य बात लग सकती है लेकिन इसका प्रभाव बहुत ही गहरा होता है। मनोविशेषज्ञों के अनुसार धीरे धीरे आदत लगने पर यह वर्चुअल ऑटिज्म के रूप में सामने आती है।

आखिर क्या है वर्चुअल ऑटिज्म

‘वर्चुअल ऑटिज्म’ दरअसल, स्मार्टफोन, टीवी और टैबलेट जैसे डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक उपयोग से जुड़ी एक गंभीर स्थिति है। इसमें दो या तीन साल से कम उम्र के छोटे बच्चे डिजिटल स्क्रीन के अत्यधिक संपर्क में रहते हैं, जिससे ASD (Autism Spectrum Disorder) जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।

गैजेट्स के संपर्क में रहने से उनमें बोलने और सुनने की समस्या शुरू होने लगती है और अकसर उन‌के व्यवहार में अजीबोगरीब बदलाव देखने को मिलते हैं। आजकल यह समस्या उन बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रहा है, जहां काम की व्यस्तता के कारण माता-पिता अपने बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते।

Virtual autism symptoms in kids

हालांकि वैज्ञानिक रूप से यह प्रूफ नहीं है कि जहां माता पिता अपने बच्चे के साथ समय नहीं बिताते, वहीं यह समस्या हो रही है। लेकिन यह बात सही है कि स्मार्टफोन के बहुत ज्यादा उपयोग से बच्चों की आंखों, उनका व्यवहार और बोलचाल काफी प्रभावित हो रहा है।

चूंकि टेक्नोलॉजी के समय में मोबाइल हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गया है, इसलिए हम अक्सर बच्चों को शांत रखने के लिए स्मार्टफोन पकड़ा देते हैं। यही स्मार्टफोन अनजाने में ‘वर्चुअल ऑटिज्म’ के खतरे को बढ़ा रहा है।

हम सभी पेरेंट्स के साथ युवाओं को भी समझना होगा कि इंटरनेट की दुनिया वास्तविक नहीं है। आप इसे देख व सुन सकते हैं, लेकिन इसे महसूस या छू नहीं सकते। इसका अनुभव रियल लाइफ़ में नहीं किया जा सकता।

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आज जिस उम्र में बच्चे अलग-अलग चीजों को छूकर, सूंघकर, चखकर, देखकर, सुनकर सीखते हैं। ऐसे में जब वो लगातार गैजेट का इस्तेमाल करने लगते हैं, तो वे वास्तविक दुनिया से बहुत दूर होते जाते हैं। ऐसे छोटे बच्चे वास्तविक दुनिया से काम की चीजें नहीं सीख पाते। इसका असर उनके दिमागी विकास पर भी पड़ता है।

इन बच्चों में इसकी वजह से सामाजिक और भावनात्मक विकास बहुत कम या ना के बराबर होता है। डिजिटल दुनिया से प्रभावित बच्चों में अक्सर जल्दबाजी, ध्यान की कमी, आउटडोर खेलों में रुचि की कमी, बोलने में देरी, दूसरों के साथ बात ना करने, चिड़चिड़ापन, मूड के हर थोड़ी देर में बदलने जैसे कई लक्षण दिख सकते हैं।

हालांकि ये जरूरी नहीं है कि जिन बच्चों में ऐसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं उनमें Virtual Autism की ही समस्या होती है। इन लक्षणों के कारण बच्चे का विकास रुक सकता है। इसलिए पेरेंट्स को ध्यान देने की बहुत जरूरत है।

जब भी छोटे बच्चों में ऐसे लक्षण दिखाई दें तो माता-पिता को अपने बच्चों का स्क्रीन टाइम धीरे धीरे करके कम करना चाहिए। उन्हें ज्यादा से ज्यादा बाहरी लोगों से मिलाने और घुमाने ले जाना चाहिए। इससे छोटा बच्चा धीरे धीरे बाहर के वातावरण को समझने लगता है।

ASD से अलग है वर्चुअल ऑटिज्म

Causes of virtual autism

दरअसल वर्चुअल ऑटिज्म एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग उन बच्चों में ऑटिज्म-जैसे लक्षणों को बताने के लिए किया जाता है जो मोबाइल, टैबलेट, टेलीविजन, कंप्यूटर की स्क्रीन के ज्यादा संपर्क में रहते हैं। वर्चुअल ऑटिज्म ASD यानि Autism Spectrum Disorder के जैसा नहीं है।

ASD एक न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder) है जिसके आनुवंशिक या न्यूरोलॉजिकल कारण होते हैं और यह जीवन भर रहता है। इसका अभी तक कोई इलाज संभव नहीं है। जबकि वर्चुअल ऑटिज्म को कुछ उपायों से ठीक किया जा सकता है।

वर्चुअल ऑटिज्म के कारण (Causes of Virtual Autism)

वर्चुअल ऑटिज्म का मुख्य कारण बचपन में डिजिटल गैजेट के बहुत ज्यादा और लंबे समय तक इस्तेमाल करना है। वर्चुअल ऑटिज्म के कुछ मुख्य कारण निम्न हैं –

बातचीत की कमी: आज अधिकतर घरों में यह देखने को मिल रहा है कि छोटे बच्चों के साथ पेरेंट्स और बड़े भाई बहन ज्यादा समय नहीं बीता रहे हैं। इसकी जगह वे बच्चों को मोबाइल या कोई गैजेट पकड़ा देते हैं।

इससे छोटे बच्चे बात कम करते हैं और अधिकतर टाइम डिजिटल गैजेट से घिरे रहते हैं। इससे स्क्रीन टाइम तो बढ़ता ही है, छोटे बच्चों में बचपन में होने वाला विकास भी ठीक से नहीं हो पाता।

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लोगों से कम मिलना: जब भी कोई बच्चा बहुत ज्यादा मोबाइल या डिजिटल गैजेट का इस्तेमाल करता है तो वह बाहरी लोगों से ठीक से मिल नहीं पाता। वह अपनी ही दुनिया में खुश रहने की कोशिश करता है।

इसका असर उसके व्यवहार पर भी पड़ता है। बच्चा कई तरह के संकेतों को जल्दी नहीं सीख पाता। इसके अलावा वह लोगों से घुलने मिलने में भी समय लगाता है।

असामान्य विकास: लगातार स्क्रीन टाइम की वजह से छोटे बच्चों के दिमाग का ठीक से विकास नहीं हो पाता। ऐसे में आगे चलकर वो सही निर्णय करने में असमर्थ होते है। इससे हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, एंग्जाइटी जैसी समस्या होने की संभावना ज्यादा होती है।

आजकल तो युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल से उनकी सोचने, समझने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ रहा है।

आज के पेरेंट्स को चाहिए कि वे अपने छोटे बच्चों को जितना हो सकें, डिजिटल गैजेट से दूर रखें। इस गैजेट्स से कई वेव्स निकलती हैं जो उनके ब्रेन के डेवलपमेंट में बाधा बन सकती हैं।

Prevention of virtual autism

नींद पर असर: इसके शिकार सिर्फ छोटे बच्चे ही नहीं हो रहे, इसका असर युवाओं पर भी देखने को मिल रहा है। डिजिटल गैजेट की स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी शरीर में मेलाटोनिन जैसे हार्मोन के बनने में रुकावट बनती है। इसका असर हमारी नींद पर पड़ता है। नींद पूरी ना होने से स्वभाव में चिड़चिड़ापन, गुस्सा जैसी समस्या आम हो चुकी है।

नजरे मिलाने से बचना: वर्चुअल ऑटिज्म के कारण छोटे बच्चे किसी से भी नजरे मिलाने से कतराते हैं। हालांकि ये हर केस में सही नहीं है, लेकिन हमेशा डिजिटल गैजेट के इस्तेमाल करने से और लोगों से बहुत कम बातचीत करने के कारण कॉन्फिडेंस कम हो सकता है। इसका असर उनके व्यवहार पर सीधा देखने को मिलता है। ये लक्षण कई अन्य बीमारियों में भी देखने को मिलते हैं।

इमोशन में कमी: आज की जेनरेशन के बच्चों में इमोशन की कमी साफ देखी जा सकती है। इसका मुख्य कारण जरूरत से ज्यादा डिजिटल गैजेट का इस्तेमाल (Causes of Virtual Autism) करना है।

बहुत ज्यादा स्क्रीन टाइम के कारण छोटे बच्चों के साथ युवाओं में भी मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन, अचानक गुस्सा आने की समस्या देखने को मिलती है। ऐसे में किसी के इमोशन को समझ पाना वर्तमान समय के बच्चों में बहुत ही कम देखने को मिल रहा है।

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फोकस्ड ना होना: स्क्रीन टाइम के बढ़ने के कारण आजकल के बच्चों में फोकस की भी कमी लगातार बढ़ रही है। इससे वे किसी भी काम को करने से बच रहे हैं। हालांकि कई ऐसे मामले भी हैं, जहां आज की पीढ़ी के युवाओं ने बड़ी बड़ी प्रतियोगिताओं में बाद चढ़ कर हिस्सा लिया है।

इनमें चेस, पिस्टल शूटिंग जैसे खेल शामिल हैं। छोटे बच्चों में एकाग्रता की कमी ज्यादा देखने को मिल रही है। वे स्मार्टफ़ोन की वजह से अपना होमवर्क पूरा नहीं करते।

वर्चुअल ऑटिज्म से बचने के उपाय (Prevention of Virtual Autism)

Prevention of virtual autism

हम सभी के लिए अच्छी खबर यह है कि “वर्चुअल ऑटिज्म” को अक्सर शुरु में ही कुछ प्रयासों से ठीक किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि Virtual Autism को कम करने के लिए क्या उपाय (Prevention of Virtual Autism) करना चाहिए –

स्क्रीन टाइम सीमित करें:

  • 18 महीने से कम: कोई स्क्रीन टाइम नहीं (परिवार के साथ वीडियो-चैटिंग को छोड़कर)।
  • 18-24 महीने: माता-पिता के साथ बहुत कम समय के लिए, कुछ एक्टिविटी से रिलेटेड वीडियो ही देखना।
  • 2-5 साल: प्रति दिन लगभग एक घंटा और सिर्फ जरूरी कंटेंट ही देखना या सुनना।
  • 6 साल से अधिक: फिक्स टाइम सेट करना और ध्यान रखना कि स्क्रीन टाइम से नींद, हेल्थ एक्टिविटी में रुकावट ना आए।
  • सोने से पहले, भोजन के दौरान, या आपस में बातचीत के समय किसी को भी स्मार्टफोन या डिजिटल गैजेट यूज़ ना करने का नियम बनाना।

खेलों के प्रति प्रोत्साहित करना:

  • हाथों से सीखने, सोचने और सामाजिक संपर्क से जुड़ी एक्टिविटी को सीखने के लिए प्रेरित करना। जैसे; खिलौने, पहेली और बिल्डिंग ब्लॉक्स के साथ खेलना।
  • कल्पनात्मक खेलों या रोल-प्लेइंग में शामिल होना।
  • ड्राइंग, पेंटिंग और अन्य रचनात्मक कलाएँ।

आउटडोर एक्टिविटी को बढ़ावा देना: छोटे बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए उन्हें पार्क में ले जाना, प्रकृति के बीच ज्यादा समय बिताना, आउटडोर खेलों के प्रति रुझान पैदा करने की कोशिश करना उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में मददगार होता है।

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बातचीत करने का समय फिक्स करना:

  • अपने बच्चे के साथ नियमित बातचीत करने का फिक्स टाइम निर्धारित करना।
  • रोज कुछ देर साथ में बैठ कर किताबें पढ़ना
  • छोटे बच्चों के साथ बैठकर उनके खेल खेलना।

घर में गैजेट फ्री प्लेस बनाना: अपने घर में एक ऐसी जगह बनाना जहां डिजिटल गैजेट का इस्तेमाल ना हो। इसमें बेडरूम, डाइनिंग टेबल, स्टडी रूम की जगह को शामिल कर सकते हैं।

इसके अलावा बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की नकल करते हैं। इसलिए जब आप अपने बच्चों के साथ हों तो खुद भी स्मार्टफोन और डिजिटल गैजेट का इस्तेमाल कम करें। कोई भी वीडियो या स्टोरी मोबाइल पर बच्चों के साथ बैठकर देखें।

इससे बच्चों में स्वस्थ आदतों के साथ कॉन्फिडेंस भी बढ़ता है। इन कुछ प्रमुख उपायों को लागू करके, माता-पिता Virtual Autism के जोखिम को काफी कम कर सकते हैं और डिजिटल युग में भी अपने बच्चों के सही डेवलपमेंट पर ध्यान दे सकते हैं।


इमेज सोर्स: Freepik

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