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विजयादशमी 2025- अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक, जानें महत्व और तिथि 

विजयादशमी 2025- अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक, जानें महत्व और तिथि 

Vijayadashami 2025 ka Mahatva

Vijayadashami 2025 ka Mahatva- भारत में त्योहारों का एक खास महत्व है। ये न केवल मनोरंजन का साधन होते हैं, बल्कि हमारी संस्कृति, मूल्यों और इतिहास को भी दर्शाते और हमें उनसे जोड़े रखते हैं।

भारत में हर पर्व अपने भीतर आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश समेटे होता है। उन्हीं में से एक है विजयादशमी या फिर दशहरा, जिसे पूरे देश में बड़े धूमधाम और आस्था के साथ मनाया जाता है।

यह पर्व हर वर्ष आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और इसे अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है।

Vijayadashami 2025 ka Mahatva- धर्म की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत, जानें दशहरा तिथि और महत्व

Vijayadashami 2025 ka mahatva

विजयादशमी 2025 – तिथि और दिन (Vijayadashami 2025 Date)

  • दिनांक: गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025
  • दशमी तिथि आरंभ: 1 अक्टूबर दोपहर 3:16 बजे
  • दशमी तिथि समाप्त: 2 अक्टूबर शाम 4:26 बजे
  • शस्त्र पूजा और विद्यारम्भ का शुभ समय: 2 अक्टूबर को सूर्योदय से शाम 4:26 बजे तक

पौराणिक कथाएं

विजयादशमी मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। इनमें से दो मुख्य कथाएं बहुत प्रसिद्ध हैं:

भगवान राम की रावण पर विजय: सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, इस दिन भगवान राम ने दस सिर वाले राक्षस रावण का वध किया था। रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था। भगवान राम ने वानर सेना की मदद से लंका पर चढ़ाई की और रावण से युद्ध किया।

यह युद्ध दस दिनों तक चला और अंत में दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का वध कर दिया और माता सीता को वापस ले आए। यह घटना दर्शाती है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में सत्य और अच्छाई की ही जीत होती है।

  • इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए इसे ‘Vijayadashami’ कहा जाता है।
  • रावण का वध त्रेता युग में हुआ था,और इसी के साथ त्रेता युग का समापन हुआ था, जिसके बाद द्वापर युग का आरंभ हुआ।
  • दशहरा’ नाम संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है: दश (दस) और हरा (हरण या विनाश करना). इस दिन भगवान राम ने दस सिरों वाले राक्षस रावण का वध किया था. इसलिए इस दिन को ‘दशहरा’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘दस बुराइयों का हरण करने वाला’।

देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर का वध: एक अन्य कथा के अनुसार, इस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था। महिषासुर ने अपने अहंकार और शक्ति से देवताओं को परेशान कर रखा था। माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक उससे युद्ध किया, जिसे नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है, और दसवें दिन उसका वध कर दिया।

यह घटना शक्ति के विजय और अहंकार के विनाश का प्रतीक है। नवरात्रि के नौ दिनों के बाद, माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था. यह विजय दसवें दिन हुई थी, इसीलिए इस दिन को ‘विजय दशमी’ कहते हैं।

  • महिषासुर का वध मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है, जहाँ इसे दूसरे मन्वंतर में घटित होना बताया गया है।
  • यह घटना त्रेतायुग में हुई थी और यह देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है, जो आज भी नवरात्रि के रूप में मनाई जाती है।

विजयादशमी कैसे मनाते हैं?

Vijayadashami का त्योहार पूरे देश में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।

  •  रावण दहन: उत्तर भारत में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतले बनाए जाते हैं।  शाम को एक खुले मैदान में भगवान राम के तीर से इन पुतलों को जलाया जाता है, जिसे रावण दहन कहते हैं। यह बुराई को खत्म करने का प्रतीक है।
  • रामलीला: दशहरा से पहले नौ दिनों तक रामलीला का मंचन होता है। इसमें कलाकार रामायण की घटनाओं को नाटक के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
  • शस्त्र पूजा: कुछ स्थानों पर इस दिन शस्त्र पूजा भी की जाती है। यह माना जाता है कि राजा और योद्धा इस दिन अपने हथियारों की पूजा करते थे, क्योंकि यह विजय का दिन है।
  • मेले और पकवान: इस अवसर पर जगह-जगह मेले लगते हैं, जिसमें लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर मनोरंजन करते हैं। घरों में तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान भी बनाए जाते हैं।

विजयादशमी का महत्व (Vijayadashami 2025 Mahatva)

विजयादशमी सिर्फ एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है। यह हमें सिखाता है कि अहंकार, क्रोध और झूठ जैसी बुराइयों को त्याग कर हमें सत्य, प्रेम, और न्याय के मार्ग पर चलना चाहिए।

यह पर्व हमें याद दिलाता है कि भले ही जीवन में चुनौतियां हों, लेकिन दृढ़ संकल्प और सच्चाई से हम हर मुश्किल को हरा सकते हैं। यह त्योहार हमें नकारात्मकता को खत्म कर जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए प्रेरित करता है।

त्योहार और उनसे जोड़ी परंपराएं

Vijayadashami 2025 ka mahatva

भारत में विजयादशमी अलग-अलग रूपों में मनाई जाती है।

  • उत्तर भारत में रामलीला का आयोजन होता है और शाम को रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतले जलाए जाते हैं। यह बुराइयों को समाप्त करने का प्रतीक है।
  • पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में विजयादशमी दुर्गा पूजा का अंतिम दिन ढोल, नगाड़ों, शंख के साथ होता है। इस दिन माँ दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है और “सिंदूर खेला” जैसी पारंपरिक रस्में निभाई जाती हैं।
  • दक्षिण भारत में इसे “विजयादशमी ” के रूप में शिक्षा और विद्या की देवी सरस्वती की पूजा के साथ जोड़ा जाता है। इस दिन नए कार्य या शिक्षा की शुरुआत शुभ मानी जाती है।
  • महाराष्ट्र और गुजरात में इसे “आयुध पूजा” और “सरस्वती पूजन” के रूप में भी मनाया जाता है।
  • महाराष्ट्र में, लोग शमी या अप्टा के पत्तों (सोने का प्रतिनिधित्व) का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे को “विजयादशमी च शुभेच्छा” की शुभकामनाएं देते हैं।
  • बच्चों को चावल की थाली पर “ओम” या “श्री” जैसे पवित्र शब्द लिखने का प्रशिक्षण दिया जाता है।विशेष रूप से केरल और तमिलनाडु में, बुजुर्ग या पुजारी अनुष्ठान का मार्गदर्शन करते हैं।
  • औज़ारों, वाहनों, पुस्तकों, मशीनों और संगीत वाद्ययंत्रों की पूजा करना कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में आम बात है।
  • बंगाल में दुर्गा पूजा का अंतिम दिन, भावुक विसर्जन समारोह के साथ भक्त “अस्चे बोचोर अबार होबे” (वह अगले साल वापस आएंगी) का जाप करते हैं।

सामाजिक और नैतिक संदेश

Vijayadashami हमें यह सिखाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में सत्य और धर्म की जीत निश्चित होती है। यह त्योहार केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें सत्य, साहस, धैर्य और संयम के महत्व का एहसास कराता है।

आज के समय में जब समाज में भ्रष्टाचार, हिंसा, अन्याय और असमानता जैसी बुराइयाँ फैली हुई हैं, तो विजयादशमी हमें प्रेरित करता है कि हम इन बुराइयों के खिलाफ खड़े हों और अच्छाई का साथ दें।

विजयादशमी का आध्यात्मिक संदेश

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  • भय, अहंकार, अज्ञानता और अन्याय पर आंतरिक विजय का प्रतीक।
  • नवीनीकरण, साहस और नई शुरुआत का समय।
  • हमें नकारात्मकता को त्यागने और धर्म का मार्ग चुनने के लिए प्रोत्साहित करता है।

घर पर कैसे मनाएं विजयादशमी

आप आधुनिक घर में भी भक्ति भाव से Vijayadashami का उत्सव मना सकते हैं:

  • देवी दुर्गा, भगवान राम या सरस्वती की छवि के साथ एक साधारण वेदी स्थापित करें।
  • फूल, नारियल, मिठाई चढ़ाएं और घी का दीया जलाएं
  • अपने लैपटॉप, पुस्तकों, औजारों या वाहन की पूजा करके शस्त्र पूजा करें।
  • बच्चों को चावल पर “ॐ” लिखकर विद्यारम्भ करने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • पड़ोसियों को मिठाई खिलाएं, शमी/ आप्ता के पत्ते आपस में बांटें और बड़ों का आशीर्वाद लें।
  • नकारात्मकता से बचें; इसके बजाय, दिन की शुरुआत प्रार्थना से करें और अंत कृतज्ञता के साथ करें।

आज विजय दशमी केवल धार्मिक या सांस्कृतिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह आत्म-विश्लेषण का अवसर भी है। जिस प्रकार हम रावण के पुतले जलाते हैं, उसी तरह हमें अपने भीतर के रावण जैसे अहंकार, क्रोध, लालच और ईर्ष्या को भी समाप्त करने का संकल्प लेना चाहिए।

यह त्योहार हमें यह याद दिलाता है कि सच्ची विजय शस्त्रों से नहीं, बल्कि विचारों और मूल्यों से होती है। विजयादशमी का पर्व हर भारतीय के लिए गर्व और प्रेरणा का स्रोत है। यह हमें बताता है कि धर्म और सत्य की राह भले ही कठिन हो, लेकिन अंततः विजय उसी की होती है।

इस दिन का वास्तविक महत्व तभी है जब हम केवल बाहरी रावण को न जलाएँ, बल्कि अपने भीतर की बुराइयों को भी मिटाकर एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश करें। इसलिए विजयादशमी का संदेश हर युग में प्रासंगिक है—सत्य की राह पर चलो, अच्छाई का साथ दो और बुराइयों को मिटाकर जीवन में नई दिशा पाओ।


Image: Freepik

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