Vat Purnima Vrat 2025: वट पूर्णिमा व्रत दक्षिण भारत में खासा प्रचलित है। इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से इस व्रत को रखती हैं।
ज्येष्ठ वट पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की पूजा होती है। इस वर्ष वट पूर्णिमा मंगलवार के दिन होने के कारण भौमवती पूर्णिमा होगी। आईए जानते हैं वट पूर्णिमा व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त पारण कब है और नियम क्या है।
Vat Purnima Vrat 2025: ज्येष्ठ वट पूर्णिमा व्रत 2025
- ज्येष्ठ वट पूर्णिमा भौमवती पूर्णिमा व्रत 10 जून 2025 मंगलवार
- पूर्णिमा तिथि शुभारंभ 10 जून सुबह 11:35 पर और पूर्णिमा तिथि का समापन होगा 11 जून दोपहर 1:13 पर
वट पूर्णिमा मुहूर्त 2025
पूजा का अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11: 59 से 12:53 तक
अमृत काल मुहूर्त- सुबह 6:32 से सुबह 8:18:00 तक
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 4:08 से सुबह 4:56 तक।
चंद्रोदय का समय- सांयकाल 6:36 पर
सिद्ध योग- 9 जून दोपहर 1:08 से 10 जून दोपहर 1: 44 तक।
साध्य योग- 10 जून दोपहर 1: 44 से 11 जून दोपहर 2:03 तक।
वट पूर्णिमा पारण कब करें।
11 जून दिन बुधवार प्रात :काल 5:44 से दोपहर 1:13 तक
वट पूर्णिमा पूजा विधि
शास्त्रों के अनुसार वट पूर्णिमा व्रत की पूजा भी ठीक वट सावित्री व्रत की ही तरह की जाती है। इस दिन आप सुबह जल्दी उठकर स्नान कर ले घर और पूजा स्थल की सफाई का स्वच्छ वस्त्र पहने और 16 श्रृंगार करें। माथे पर पीला या लाल सिंदूर लगाए।
इसके बाद बरगद के पेड़ के सामने सत्यवान सावित्री और यमराज की पूजा करें। दीपक जलाकर फल मिठाई अक्षत व अन्य सामग्री चढ़ाएं। बरगद के पेड़ की जड़ों में जल से सिंचे और कच्चा सूत वृक्ष की परिक्रमा करते हुए 108 बार लपेट ले। वट वृक्ष के नीचे व्रत कथा जरूर पढ़ें इससे आपकी हर इच्छा पूरी होती है।
वट पूर्णिमा व्रत पानी कब पीए
वट पूर्णिमा व्रत निर्जल किया जाता है। आमतौर पर वट पूर्णिमा व्रत में पानी का सेवन व्रत के पारण यानी व्रत तोड़ने के समय पिया जाता है। जो भी लोग इस व्रत को निर्जला रखते हैं, वे वटवृक्ष की पूजा के बाद बरगद के पेड़ पर चढ़ाया हुआ चने का प्रसाद बिना चबाये निगलने के बाद ही पानी पीकर व्रत खोल लें।
कुछ लोग मीठे चावल या खीर का सेवन करके भी व्रत खोलते हैं तो आप इस व्रत को खोलते समय अपने यहां की मान्यता का ध्यान जरूर रखें।
वट पूर्णिमा पूजा का महत्व क्या हैं
वट पूर्णिमा पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य के लिए रखती हैं।
यह व्रत सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से संबंधित है, जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान के जीवन की रक्षा के लिए यमराज से संघर्ष किया था।
– पति की दीर्घायु: इस व्रत को करने से पति की आयु लंबी होती है और उनके स्वास्थ्य में सुधार होता है।
– सुखद वैवाहिक जीवन: वट पूर्णिमा व्रत पति-पत्नी के बीच प्रेम और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है।
– पुण्य की प्राप्ति: इस व्रत को करने से स्त्रियों को पुण्य की प्राप्ति होती है और उनके सभी पापों का नाश होता है।
– ग्रहों की शांति: वट पूर्णिमा व्रत ग्रहों की शांति के लिए भी लाभकारी माना जाता है।
– मनोकामनाओं की पूर्ति: इस व्रत को करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
वट पूर्णिमा पूजा के लिए आवश्यक सामग्री:
– वट वृक्ष की प्रतिमा या बेल
– सावित्री और सत्यवान की तस्वीर
– बांस का पंखा
– कच्चा सूत या कलावा
– सिंदूर, रोली, अक्षत, कुमकुम, चंदन
– फूल
– फल
– भिगोए हुए काले चने
– मिठाई, बताशे, नारियल
– धूप, दीपक, अगरबत्ती
– जल का कलश
– शृंगार का सामान
– वट सावित्री व्रत कथा की पुस्तक
– सवा मीटर लाल या पीला कपड़ा आदि
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