UP Darshan Park Lucknow: लखनऊ, एक ऐसा शहर जो पूरे वर्ल्ड में नवाबों के शहर और अपने स्वादिष्ट लजीज़ पकवानों के लिए प्रसिद्ध है। भारत देश से ही नही बल्कि विदेशों से भी लोग लखनऊ के लजीज़ पकवानों को खाने के लिए आते हैं।
यहाँ उत्तर प्रदेश का पहला ऐसा पार्क बन चुका है जिसको बनाने में वेस्ट मैटेरियल का इस्तेमाल किया गया है। इस पार्क का नाम ‘यूपी दर्शन पार्क’ है। लखनऊ के इस पार्क में उत्तर प्रदेश के अलग-अलग 16 फेमस जगहों की छोटी कलाकृतियाँ बनाई गयी हैं। ये देखने में बेहद खूबसूरत लगती हैं।
UP Darshan Park Lucknow: क्यों है ख़ास यूपी दर्शन पार्क
यूपी दर्शन पार्क की छोटी कलाकृतियों को विभिन्न प्रकार के स्क्रैप मैटेरियल से बनाया गया है। इनमें लोहा, फोर व्हीकल के स्क्रैप, रोलिंग शटर, जंग लगी अलमारी, टायर रिम, साइकिल फ्रेम और घरेलू लोहे के कचरे जैसे अपशिष्ट पदार्थों का उपयोग किया गया है।
पार्क में बनने वाले स्मारकों के मॉडल में लखनऊ विधानसभा, झाँसी का किला, मथुरा का बांके बिहारी और वृन्दावन मंदिर, बलरामपुर का देवीपाटन मंदिर, ताज महल, वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर आदि प्रमुख है। इसके अलावा यहाँ पर एक फूड कोर्ट और अन्य सुविधाएं भी मौजूद हैं।
UP Darshan Park Lucknow: भारत में सबसे पहले दिल्ली में भारत दर्शन पार्क बना था। इस पार्क में भी वेस्ट मैटेरियल का ही उपयोग किया गया था। इस पार्क की लोकप्रियता को देखते हुए यू पी सरकार ने उत्तर प्रदेश में भी ऐसे पार्क को बनाना शुरू किया। कई टन कचरे का इस्तेमाल करके 16 प्रकार की कलाकृतियों को बनाया गया है।
कचरे का किस तरह से उपयोग किया जा सकता है, इस दिशा में यह सरकार की अनूठी पहल है। आइए इस पार्क से जुड़ी कलाकृतियों के बारे में जानते हैं-
- झाँसी का किला
- ताज महल
- फ़तेहपुर सीकरी
- बांकेबिहारी मंदिर
- राधा रानी मंदिर
- बड़ा इमामबाड़ा
- विधान सभा
- राम मंदिर
- विंध्याचल मंदिर
- गोरखनाथ मंदिर
- परिनिर्वाण स्तूप
- दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
- कुंभ मेला
- तुलसी दास
- काशी विश्वनाथ मंदिर
- देवी पाटन मंदिर
झाँसी का किला
इस किले के छोटे प्रारूप को बनाने में लगभग 16 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह हूबहू झाँसी के किले जैसा ही दिखता है। झाँसी का किला वास्तुकला का अद्भुत नमूना है। यह रानी लक्ष्मी बाई के अदम्य साहस को बताता है।
ताज महल
ताज महल के प्रारूप को बनाने में लगभग 18 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। पूरे विश्व में प्रसिद्ध ताज महल को प्यार की निशानी के लिए भी जाना है। यह आगरा में स्थित है।
फ़तेहपुर सीकरी
फ़तेहपुर सीकरी में मशहूर स्मारक, बुलंद दरवाज़ा के प्रारूप को बनाने में लगभग 10 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह मुग़ल काल में सम्राट अकबर की राजधानी रहा है। फतेहपुर सीकरी अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है।
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बांके बिहारी मंदिर
इस मंदिर के प्रतिरूप को बनाने में लगभग 13 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह मंदिर वृंदावन में स्थित है। भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं के कारण वृंदावन को पूरे विश्व में जाना जाता है।
राधा रानी मंदिर
इस मंदिर के छोटे प्रारूप को बनाने में लगभग 12 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। उत्तर प्रदेश के बरसाना में स्थित इस मंदिर को श्री राधा रानी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को राधा जी की जन्मस्थली भी माना जाता है।
विधान सभा
विधान सभा के प्रतिरूप को बनाने में लगभग 14 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। वर्तमान विधान सभा का निर्माण 1937 के आस-पास का बताया जाता है।
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राम मंदिर
इस मंदिर के प्रारूप को बनाने में लगभग 16 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। राम मंदिर हिंदुओं की आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। यह अयोध्या में स्थित है। इसी साल 2024 में 22 जनवरी को इस मंदिर को आम जनता के दर्शन के लिए खोल दिया गया।
बड़ा इमामबाड़ा
बड़ा इमामबाड़ा के छोटे प्रारूप को बनाने में लगभग 13 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह लखनऊ में स्थित है। यह इमामबाड़ा अपने वास्तुशिल्प और अद्वितीय निर्माण तकनीक के कारण प्रसिद्ध है। इसके हॉल में किसी भी बीम या लोहे की छड़ का उपयोग नहीं किया गया था।
विंध्याचल मंदिर
इस मंदिर के प्रतिरूप को बनाने में लगभग 13 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह एक हिंदू मंदिर है, जो उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले में स्थित है।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
इस अभयारण्य के प्रारूप को बनाने में लगभग 13 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान भारत-नेपाल सीमा के समीप ही लगभग 490 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें बाघ, तेंदुआ, हाथी के साथ-साथ लगभग 450 से अधिक पक्षियों को संरक्षित किया जा रहा है।
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गोरखनाथ मंदिर
इस मंदिर के प्रारूप को बनाने में लगभग 12.5 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह मंदिर नाथ सम्प्रदाय का केंद्र रहा है। वर्तमान में योगी आदित्यनाथ जी इस मंदिर के उत्तराधिकारी हैं।
परिनिर्वाण स्तूप
बौद्धों के लिए पवित्र इस तीर्थ स्थल के छोटे प्रारूप को बनाने में लगभग 7.5 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। यह उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में स्थित है। महापरिनिर्वाण स्तूप बौद्ध धर्म में अत्यधिक महत्व रखता है। यहाँ पर ही बुद्ध ने मोक्ष प्राप्त किया था।
कुंभ मेला
इस मेले का छोटा प्रारूप बनाने में लगभग 9 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। कुंभ मेला भारत में हर 12 वर्षों के बाद लगता है। यह प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में मनाया जाता है। इसमें आम नागरिक के साथ-साथ दूर-दूर से संतों का भी आगमन होता है।
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तुलसी दास
तुलसी दास जी के छोटे प्रारूप को बनाने में लगभग 8 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदू महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ की रचना की।
काशी विश्वनाथ मंदिर
इस मंदिर के छोटे प्रारूप को बनाने में लगभग 9 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और यह पवित्र हिंदू तीर्थ स्थलों में से एक है। काशी को भगवान शिव का सबसे पवित्र निवास स्थान माना जाता है। वर्तमान में जो मंदिर है, वह अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाया गया है।
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देवी पाटन मंदिर
इस प्राचीन मंदिर के प्रतिरूप को बनाने में लगभग 11 टन से भी ज्यादा कचरे का इस्तेमाल किया है। बलरामपुर जिले के तुलसीपुर में स्थित देवी पाटन मंदिर के प्रति हिंदुओं में विशेष आस्था है।
कचरे से ऐसे पार्क बनाने से लोगों में सांस्कृतिक इमारतों और विरासतों को जानने के प्रति रुझान बढ़ेगा और इससे पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में भी सहायता मिलेगी।
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