Significance Of Chhath Puja Vrat: छठ पूजा पर्व भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्यौहार है जो कार्तिक शुक्ल षष्टि के दिन मनाया जाता है। छठ पूजा मुख्य तौर से सूर्य देव की उपासना का पर्व है इस दौरान भक्त 36 घंटों का व्रत रखते हैं।
पुराणों के अनुसार छठ पूजा की शुरुआत रामायण के दौरान हुई थी रावण का वध कर जब प्रभु श्री राम और मां सीता वनवास से अयोध्या लौटे तब उन्होंने इस उपवास का पालन किया था।
ऐसा भी माना जाता है कि कर्ण जो सूर्य देव के पुत्र हैं वह सूर्य भगवान के परम भक्त थे और पानी में घंटों खड़े रहकर अर्घ्य देते थे। पांडवों के स्वास्थ्य और दीर्घ आयु के लिए द्रौपदी भी सूर्य देव की उपासना करती थी कहते हैं कि उसके इसी श्रद्धा के कारण पांडवों को उनका राज्य पाट फिर से मिला था।
Significance Of Chhath Puja Vrat:छठ पूजा पर्व का धार्मिक महत्व।
इस पर्व से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है राजा प्रियव्रत और रानी मालिनी निःसंतान थे जिस कारण वह बहुत दुखी थे तब महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्र कामेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी जब उन्होंने यह यज्ञ किया तब महर्षि कश्यप ने यज्ञ के प्रसाद के रूप में रानी मालिनी को खीर खाने के लिए दी। कुछ समय पश्चात ही राजा और रानी को पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन उनकी किस्मत इतनी खराब थी कि वह बच्चा मृत अवस्था में पैदा हुआ था।
राजा जब अपने पुत्र का मृत देह लेकर शमशान गए तब राजा अपने प्राणों की भी आहुति देने जा रहे थे तभी उनके सामने “देवसेना” यानी छठ देवी वहां पर प्रकट हुई जिन्हें “षष्टी” के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने राजा को बताया कि अगर कोई सच्चे मन से विधिवत उनकी पूजा करे तो उस व्यक्ति के मन की हर इच्छा पूरी होती है।
देवी ने राजा को अपनी पूजा करने की सलाह दी इस बात को सुनकर राजा ने देवी षष्टि की सच्चे मन से पूजा की और व्रत कर उन्हें प्रसन्न किया। राजा से प्रश्न होकर देवी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया।
कहते हैं कि राजा ने जिस दिन वह पूजा की थी वह कार्तिक शुक्ल षष्टि का दिन था और उस दिन से आज तक इस पूजा की प्रथा चलती आ रही है।आज भी लोग इस व्रत को संतान प्राप्ति और अपने घर में सुख समृद्धि तथा दीर्घायु के लिए करते हैं।
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छठ पूजा पर्व के महत्वपूर्ण दिन और उनका महत्व
छठ पूजा पर्व के चार महत्वपूर्ण दिन होते हैं।
1.नहाए खाए
नहाए खाए छठ पूजा पर्व का पहला दिन होता है इस दिन सबसे पहले घर की साफ सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है इसके बाद महिलाएं स्नान कर अपने आप को पवित्र करती हैं। स्नान करने के बाद वे शुद्ध और सात्विक भोजन करके व्रत की शुरुआत करते हैं।
इस दिन चना दाल लौकी की सब्जी रोटी के साथ खाई जाती है। पकाए हुए खाने को सबसे पहले व्रत करने वाली महिलाएं खाती हैं और उसके बाद घर के बाकी सदस्य खाते हैं।
2.खरना
छठ पूजा का दूसरा दिन है खरना उस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति पूरे दिन का उपवास रखते हैं जिसमें ना ही वे कुछ कहते हैं और ना ही कुछ पीते हैं।
शाम के समय गुड़ वाले खीर प्रसाद के तौर पर बनाई जाती है, जिसे पूजा करने के बाद व्रत करने वाली महिलाएं खाती हैं। उसी रात छठी मैया के लिए चाशनी, गेहूं का आटा और घी से बना हुआ ठेकुआ प्रसाद के तौर पर बनाते हैं।
3. संध्या अर्घ्य
ये तीसरा दिन छठ पूजा का मुख्य दिन है इस पूरे दिन व्रत करने वाले पूरे दिन व्रत रखते हैं और शाम में वे नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर डूबते सूरज को अर्घ्य देते हैं।
जब व्रती घाट की तरफ अर्घ्य देने के लिए जाती है तब उनके घर का पुरुष एक बांस की टोकरी लेकर आगे चलते हैं जिसके बेहगी कहते हैं। इस बेहंगी में फल, प्रसाद और पूजा कि सामग्री रखी जाती है।
4.उषा अर्घ्य
छठ पूजा पर्व के चौथे दिन उगते सूरज की पूजा की जाती है व्रती और अन्य घर के लोग फिर एक बार नदी के किनारे इकट्ठा होकर छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए उनके गीत गाते हैं।
फिर अंत में व्रती प्रसाद और कच्चे दूध के शरबत का सेवन करके व्रत तोड़ते हैं और इस प्रकार छठ पूजा की समाप्ति होती है।
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