Meenakshi Amman Temple Facts: भारत देश में कई प्राचीन शहर है जिनमें से एक है मदुरई ऐसी मान्यता है कि इस शहर की रक्षा यहां की योद्धा रक्षा कुमारी मीनाक्षी देवी करते हैं। इस शहर के बीचो-बीच स्थित है मीनाक्षी अम्मा को समर्पित किया गया मीनाक्षी सुंदरेश्वर मंदिर।
यहां के स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस शहर को भगवान शिव के उपदेश अनुसार बनाया गया है।ऐसा माना जाता है कि मदुरई शहर की रचना कुंडली मारे हुए हलस्य नामक सर्प के आकार के रूप में की गई थी। सर्प का शरीर शहर की सीमाओं को दर्शाता है और उसका मुंह और पूछ केंद्र की ओर इशारा करते हैं जहां मीनाक्षी मंदिर बांधा गया है।
Meenakshi Amman Temple Facts: मीनाक्षी अम्मा और सुंदरेश्वर को समर्पित।
कुछ कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में मदुरै शहर के जगह पर कदंब वन हुआ करता था। एक दिन एक व्यापारी ने उस वन में भगवान इंद्र को शिवलिंग की पूजा करते हुए देखा। जब ये खबर वहां के राजा तक पहुंची तब उन्होंने उस वन को हटाकर शिवलिंग के चारों ओर मंदिर बनवाया। वही मंदिर आज मीनाक्षी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।
यह मंदिर मीनाक्षी और सुंदरेश्वर यानी मां पार्वती और भगवान शिव को समर्पित किया गया है। इसकी विशेषता यह है कि तमिलनाडु में जितने भी शिव मंदिर हैं उनमें से यह एक ही मंदिर है जो भगवान शिव के साथ देवी पार्वती को भी समर्पित किया गया है।
कौन है मीनाक्षी अम्मा और ये मंदिर उन्हें क्यों समर्पित किया गया?
थिरुविलैयादल पुराण में दी गई कथा के अनुसार तमिलनाडु के मदुरै शहर पर मलयध्वज नमक पंड्या राजा राज करते थे उनके राज्य का कोई उत्तराधिकारी नहीं था उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया। उस यज्ञ के प्रसाद के रूप में उन्हें एक 3 साल की कन्या मिली जिसके तीन वक्ष थे।
उस बच्ची का राजा मलयध्वज और उनकी पत्नी रानी कांचमलई ने भरण पोषण किया और उसे युद्ध सहित अनेक विद्याओं की शिक्षा दी। राजा और रानी ने उसका नाम ताडातगई रखा था लेकिन उस कन्या की आंखें मछली के आकार की थी इसलिए मदुरई की प्रजा उसे मीनाक्षी कह कर पुकारती थी। यही मीनाक्षी आगे चलकर बनी मीनाक्षी अम्मा, जिसे माता पार्वती का रूप माना जाता है।
तीसरा वक्ष गायब होने की भविष्यवाणी।
ऐसी भविष्यवाणी की गई थी कि जब मीनाक्षी अपने होने वाले पति से मिलेगी तब उसका तीसरा वक्ष गायब हो जाएगा। बड़ी होकर मीनाक्षी एक महान योद्धा बनी और दिग्विजय होने के लिए वह अपनी सेना के साथ आठों दिशाओं के राज्यों को जीतने के लिए निकली।
सारे विश्व पर जीत पाने के बाद वह भगवान शिव से युद्ध करने कैलाश जा पहुंची तब तक नंदी ने यह वार्ता शिवजी को दी थी और शिवजी युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे।
भगवान शिव से सामना होने पर मीनाक्षी शर्मा गई और उसका तीसरा वक्ष लुप्त हो गया और उसने भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार किया।
जब मीनाक्षी और सुंदरेश्वर को मदुरई का शासक घोषित किया।
मदुरई लौटने पर मीनाक्षी को उसके पिता ने मदुरई का शासक घोषित किया और भगवान शिव से उसका विवाह धूमधाम से करवा दिया। मीनाक्षी और सुंदरेश्वर यानि भगवान शिव के विवाह महोत्सव पर आज भी मदुरई में चैत्र महीने में नाट्यों का आयोजन किया जाता है।
इस महोत्सव को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं मीनाक्षी और सुंदरेश्वर की कांस्य प्रतिमाओं को पालकी में सजाया जाता है और संपूर्ण शहर को दर्शन कराया जाता है। ऐसा माना जाता है की मीनाक्षी और सुंदरेश्वर मदुरई के सच्चे शासक हैं और अनेक पंड्या और नायक राजाओं ने उनकी ओर से शासन किया है।
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