Significance of Garba and Dandiya During Navratri- नवरात्रि, यानी नौ रातों का त्योहार, पूरे भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और महिषासुर पर उनकी विजय का प्रतीक है। हालांकि, इस त्योहार का एक और महत्वपूर्ण पहलू है, जो इसे सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान से कहीं बढ़कर बना देता है – और वो है गरबा और डांडिया।
ये दोनों नृत्य रूप न केवल गुजरात की पहचान हैं, बल्कि अब पूरे देश में नवरात्रि उत्सव का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। ये नृत्य सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे गहरा आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व छिपा हुआ है।
Significance of Garba and Dandiya During Navratri- आखिर नवरात्रि में ही क्यों होता है गरबा और डांडिया, जानें महत्व और अंतर
गरबा का इतिहास और परंपरा
गरबा शब्द संस्कृत के गर्भ दीप से आया है, जिसका अर्थ है गर्भ के अंदर रखा हुआ दीपक। पारंपरिक गरबा नृत्य में, महिलाएं एक मिट्टी के घड़े के चारों ओर गोला बनाकर नृत्य करती हैं। इस घड़े को गरबो कहते हैं, जिसके अंदर एक दीपक जलता है। यह दीपक जीवन, ऊर्जा और रचनात्मकता का प्रतीक है, और इसे देवी शक्ति (दुर्गा) का रूप माना जाता है।
महिलाएं इस दीपक के चारों ओर घूमती हैं, जो दर्शाता है कि सभी जीव, देवी की दिव्य ऊर्जा के चारों ओर घूम रहे हैं। यह ब्रह्मांड में जीवन चक्र का भी प्रतीक है। गरबा पश्चिम भारतीय राज्य गुजरात का एक नृत्य रूप है, जो अक्टूबर में हिंदू देवी दुर्गा की पूजा में किया जाता है।
हालाँकि गरबा मुख्य रूप से नवरात्रि उत्सवों के दौरान किया जाने वाला एक कार्यक्रम है, यह आनंदमय लोक नृत्य गुजरात में लगभग हर विशेष अवसर पर एक पवित्र परंपरा के रूप में किया जाता है। हालाँकि इनमें से कुछ नृत्यों में पुरुष भी भाग लेते हैं, लेकिन गरबा करने वाले आमतौर पर महिलाएँ और युवतियाँ होती हैं।
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हाल के दिनों में दुनिया भर में प्रशंसित, गरबा हर इंसान के भीतर दिव्य ऊर्जा की उपस्थिति का संदेश देकर लोगों को सशक्त बनाता है। सैकड़ों लोग एक जगह इकट्ठा होते हैं और शानदार धूमधाम से प्रदर्शन करते हैं।
गरबा नृत्य एक धीमी गति से शुरू होता है और धीरे-धीरे गति पकड़ता है। नर्तक एक गोलाकार घेरे में घूमते हैं, जो समय के चक्र और जीवन के चक्र को दर्शाता है। यह एक ऐसा चक्र है जो कभी न खत्म होने वाला है, जिसमें जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म शामिल हैं।
पारंपरिक गरबा नृत्य में, तालियाँ बजाने की विशेष लय का उपयोग किया जाता है, जो संगीत और नृत्य के साथ मिलकर एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला माहौल बनाता है। आजकल, गरबा में आधुनिक धुनों और शैलियों का भी समावेश हो गया है, जिससे यह युवाओं के बीच और भी लोकप्रिय हो गया है।
हिंदू धर्म में गरबा का महत्व
गरबा नृत्य एक लालटेन के चारों ओर किया जाता है, जो एक ऐसा पात्र है जो मानव शरीर के भीतर आत्मा को धारण करने वाले व्यक्ति का प्रतीक है। नर्तक इसके चारों ओर संकेंद्रित वृत्तों में घूमते हैं, ठीक उसी तरह जैसे हिंदू धर्म में समय को एक चक्र के रूप में दर्शाया गया है।
गरबा जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म की अनंत प्रकृति को दर्शाता है। जहाँ पूरा ब्रह्मांड विकसित और परिवर्तित होता रहता है, वहीं देवी दुर्गा और नर्तकों की आत्माओं में उनकी शक्ति शाश्वत है।
भारतीय पौराणिक कथाओं में गरबा
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हिंदू पौराणिक कथाओं में, जब देवी दुर्गा ने दुष्टों का वध किया, तो उनकी विजय के उपलक्ष्य में नवरात्रि मनाई गई और गरबा देवी की शक्ति के प्रकटीकरण का एक अभिन्न अंग था। शांति के अपने प्रयासों में उन्होंने जो विनाश किया, उसमें राक्षसों पर क्रोध प्रकट करने के लिए उनकी तलवार सबसे शुभ हथियार थी। गरबा में इस्तेमाल की जाने वाली डांडिया की छड़ियाँ देवी की तलवार और अजेयता का प्रतीक हैं।
गरबा और नवरात्रि महोत्सव
नवरात्रि एक हिंदू त्योहार है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “नौ रातें”। हालाँकि यह त्योहार पूरे भारत में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है, लेकिन गुजरात में देवी के सम्मान के प्रतीक के रूप में नौ रातों तक गरबा नृत्य करने की प्रमुख परंपरा है। ये नृत्य देर शाम शुरू होते हैं और आधी रात तक चलते हैं।
धार्मिक आस्था के अनुसार, पुरुष और महिलाएं नवरात्रि के नौ दिनों और रातों के दौरान विशेष आहार का पालन करते हैं और सीमित मात्रा में भोजन करते हैं। नवरात्रि के अलावा, होली, वसंत उत्सव, शादियों, पार्टियों और सामाजिक आयोजनों के दौरान भी गरबा किया जाता है।
डांडिया रास का इतिहास और परंपरा
डांडिया, जिसे डांडिया रास के नाम से भी जाना जाता है, गरबा से थोड़ा अलग है, लेकिन दोनों अक्सर एक साथ ही खेले जाते हैं। डांडिया शब्द डंडा से आया है, जिसका अर्थ है स्टिक। इस नृत्य में नर्तक रंग-बिरंगी सजी हुई लकड़ी की छड़ियों का उपयोग करते हैं, जिन्हें डांडिया कहते हैं।
ये छड़ियाँ देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध में तलवारों का प्रतीक मानी जाती हैं। नर्तक आपस में अपनी छड़ियों को टकराते हुए नृत्य करते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाता है। डांडिया नृत्य गरबा की तुलना में अधिक तेज और ऊर्जावान होता है।
इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों समान रूप से भाग लेते हैं। डांडिया की छड़ियों को आपस में टकराने की ध्वनि नृत्य में एक विशेष लय और ताल जोड़ती है। यह नृत्य समूह में किया जाता है, जिसमें नर्तक अलग-अलग पैटर्न और आकृतियों में घूमते हैं, जिससे यह और भी आकर्षक लगता है।
डांडिया को अक्सर तलवार नृत्य भी कहा जाता है, जो शक्ति और शौर्य का प्रतीक है। यह नृत्य देवी दुर्गा की महिषासुर पर जीत का एक नाटकीय और जीवंत चित्रण है।
गरबा और डांडिया के बीच अंतर
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भले ही गरबा और डांडिया अक्सर एक साथ खेले जाते हैं, लेकिन इनके बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:
- उत्पत्ति और उद्देश्य: गरबा की उत्पत्ति धार्मिक और आध्यात्मिक है, यह देवी शक्ति को समर्पित है। इसका मूल उद्देश्य देवी के सम्मान में नृत्य करना है। वहीं, डांडिया का उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की विजय, यानी देवी दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध का प्रतीक है।
- नृत्य की शैली: गरबा में मुख्य रूप से हाथ की मुद्राओं और तालियों का उपयोग होता है, और यह अक्सर एक गोलाकार घेरे में किया जाता है। डांडिया में लकड़ी की छड़ियों का उपयोग होता है, और यह गरबा से अधिक तेज और ऊर्जावान होता है।
- संगीत और लय: गरबा में धीमी से मध्यम गति की पारंपरिक धुनें होती हैं, जबकि डांडिया में तेज और ऊर्जावान लोकगीत बजाए जाते हैं।
लोकप्रिय मान्यताएँ और धारणाएँ
सबसे अधिक भ्रमित धारणाओं में से एक है गरबा नृत्य और डांडिया नृत्य के बीच का अंतर। हालाँकि दोनों की उत्पत्ति गुजरात से हुई है, लेकिन इन्हें विभिन्न अवसरों पर किया जाता है। वृंदावन गार्डन में भगवान कृष्ण की स्तुति में डांडिया किया जाता है।
डांडिया भी रंग-बिरंगी छड़ियों के साथ किया जाता है, जबकि गरबा में हाथों की गति, ताली बजाना और गोलाकार नृत्य संरचनाएँ शामिल होती हैं। गरबा केवल गुजरात तक ही सीमित त्योहार नहीं है, बल्कि यह अन्य भारतीय राज्यों और कनाडा, अमेरिका और नीदरलैंड जैसे विदेशी देशों में भी प्रचलित है।
नवरात्रि में गरबा-डांडिया का महत्व
नवरात्रि में गरबा और डांडिया सिर्फ नृत्य ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक मिलन का माध्यम भी हैं। ये नृत्य लोगों को एक साथ लाते हैं, चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या सामाजिक वर्ग के हों। पुरुष, महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी एक साथ मिलकर इन नृत्यों में भाग लेते हैं।
यह सामूहिक भागीदारी सामुदायिक सद्भाव और एकता को बढ़ावा देती है। इसके अलावा, इन नृत्यों का आध्यात्मिक महत्व भी है। लगातार नौ रातों तक गरबा और डांडिया खेलने से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का संचार होता है।
यह एक प्रकार का ध्यान भी है, जो लोगों को अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा से जोड़ता है। आजकल, गरबा और डांडिया की लोकप्रियता पूरे देश और यहाँ तक कि विदेशों में भी फैल गई है।
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बड़े-बड़े शहरों में नवरात्रि के दौरान भव्य गरबा रास का आयोजन किया जाता है, जहाँ हजारों लोग एक साथ मिलकर इस उत्सव का आनंद लेते हैं। पारंपरिक पहनावे जैसे चनिया चोली (महिलाओं के लिए) और केडिया-पजामा (पुरुषों के लिए) इन नृत्यों का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैं, जो उत्सव में और रंग भरते हैं।
गरबा और डांडिया सिर्फ नृत्य नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय संस्कृति की एक जीवंत अभिव्यक्ति हैं। ये देवी शक्ति की पूजा, सामुदायिक एकता और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। ये नौ रातों तक चलने वाले इस त्योहार में जीवन, उल्लास और ऊर्जा का संचार करते हैं, और इसे एक अविस्मरणीय अनुभव बनाते हैं।
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ब्लॉगिंग को पैशन की तरह फॉलो करने वाले आशीष की टेक्नोलॉजी, बिज़नेस, लाइफस्टाइल, ट्रैवेल और ट्रेंडिंग पोस्ट लिखने में काफी दिलचस्पी है।