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रावण दहन की परंपरा, क्यों और कैसे हुई शुरुआत?

रावण दहन की परंपरा, क्यों और कैसे हुई शुरुआत?

Ravan Dahan Tradition-भारत का सबसे प्रमुख त्योहार दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। दशहरे का सबसे चर्चित हिस्सा है रावण दहन, यानी रावण के पुतले को जलाना।

यह केवल मेले का मनोरंजन नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताएँ हैं। रावण दहन का मुख्य उद्देश्य हमें यह सिखाना है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में सत्य और धर्म की विजय होती है।

Ravan Dahan Tradition-रावण दहन का धार्मिक महत्व

Ravan dahan tradition

Ravan Dahan का धार्मिक महत्व प्राचीन रामायण में मिलता है। भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की। रावण को अहंकार, लोभ और अधर्म का प्रतीक माना जाता है।

दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाना यह संदेश देता है कि बुराई का अंत अवश्य होता है और अच्छाई हमेशा विजयी होती है। इसके अलावा, यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि संयम, धैर्य और साहस से बुराई पर विजय पाई जा सकती है।

रावण दहन की ऐतिहासिक शुरुआत

Ravan Dahan की ऐतिहासिक शुरुआत कई शताब्दियों पुरानी है। प्राचीन काल में इसे रामलीला के साथ जोड़ा गया। उत्तर भारत के गाँवों और नगरों में पहले रामलीला का मंचन किया जाता था और दशमी के दिन मंचित नाटकों के अनुसार रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का दहन किया जाता था।

यह परंपरा केवल धार्मिक उत्सव नहीं थी, बल्कि समाज में सदाचार और नैतिक शिक्षा फैलाने का माध्यम भी थी। लोग इस अवसर पर एकत्रित होकर कथा सुनते और बुराई के प्रतीक को जलाने का आनंद लेते थे।

विभिन्न राज्यों में रावण दहन की परंपरा

भारत के विभिन्न राज्यों में Ravan Dahan की परंपरा अलग-अलग ढंग से मनाई जाती है। उत्तर भारत में रावण दहन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। गाँव और शहरों में रामलीला का मंचन होता है और रावण का विशाल पुतला जलाया जाता है। पश्चिम भारत में, खासकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में रावण दहन के साथ-साथ मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।

पूर्वी भारत में, विशेषकर बंगाल और असम में रावण दहन की जगह दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के माध्यम से बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश दिया जाता है। दक्षिण भारत में भी रावण पुतलों का दहन कम देखा जाता है, लेकिन रामलीला और रामकथा का मंचन परंपरा का हिस्सा है।

आधुनिक युग में रावण दहन

आधुनिक युग में Ravan Dahan केवल धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधि नहीं रह गया है। यह समाज में एकता, पर्यावरण जागरूकता और मनोरंजन का हिस्सा बन गया है। कई शहरों में अब इको-फ्रेंडली रावण पुतले बनाए जाते हैं ताकि प्रदूषण कम हो और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

बड़े मैदानों में रोशनी, ध्वनि और रंग-बिरंगे शो के साथ कार्यक्रम आयोजित होते हैं। बच्चों और युवाओं के लिए यह शिक्षा का माध्यम भी बन गया है, जिसमें वे समझते हैं कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा विजय होती है।

रावण दहन का सामाजिक और नैतिक संदेश

Ravan Dahan का महत्व केवल त्योहार तक सीमित नहीं है। यह हमें सामाजिक और नैतिक मूल्यों की याद दिलाता है। यह परंपरा सदियों से भारतीय समाज में अच्छाई, साहस और नैतिक शिक्षा का संदेश देती रही है।

रावण दहन के माध्यम से बुराई और अहंकार के खिलाफ लड़ाई की प्रतीकात्मक शिक्षा दी जाती है। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को यह याद दिलाया जाता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वाला अंततः विजयी होता है। इस प्रकार, Ravan Dahan केवल एक धार्मिक रिवाज नहीं, बल्कि यह धर्म, संस्कृति और नैतिक शिक्षा का संगम है।

यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, संयम, साहस और सत्कर्म के रास्ते पर चलकर हम हमेशा जीत सकते हैं। दशहरा और रावण दहन की यह परंपरा न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि यह हमें जीवन और समाज में अच्छाई की विजय का स्थायी संदेश देती है।

इमेज सोर्स: Twitter

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