Raksha Bandhan 2025 Date: रक्षाबंधन का पर्व इस साल 9 अगस्त 2025 को देशभर में उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा। यह दिन भाई-बहन के प्रेम, रक्षा और विश्वास का प्रतीक है। हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार शनिवार को पड़ रहा है, जो धार्मिक दृष्टिकोण से और भी विशेष माना जा रहा है।
Raksha Bandhan 2025 Date: क्या है शुभ मुहूर्त?
पंडितों और धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस बार Raksha Bandhan के लिए राखी बांधने का सबसे शुभ समय सुबह 10:50 बजे से लेकर दोपहर 1:35 बजे तक रहेगा। इसके बाद भद्रा काल शुरू होगा, जिसमें राखी बांधने से परहेज़ करने की सलाह दी जाती है।
भद्रा काल: दोपहर 1:35 बजे से शाम 4:30 बजे तक
रात्रि में भी राखी बांधी जा सकती है, यदि बहन भाई से दूर हो या कोई अन्य कारण हो।
Raksha Bandhan 2025 में क्या है नया?
1. ईको-फ्रेंडली राखियों का ट्रेंड बढ़ा:
हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस Raksha Bandhan 2025 में बाजार में ईको-फ्रेंडली राखियों की मांग तेजी से बढ़ी है। राखियों में बीज वाले धागे, मिट्टी और बांस से बने डिज़ाइनों को प्राथमिकता दी जा रही है, जिससे पर्यावरण को नुकसान न हो।
2. डिजिटल राखी और वर्चुअल सेलिब्रेशन:
टेक्नोलॉजी के दौर में अब डिजिटल राखी का चलन भी बढ़ा है। खासकर जो भाई-बहन विदेशों में हैं, वे वीडियो कॉल और डिजिटल ग्रीटिंग्स के जरिए यह पर्व मना रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी राखी स्टिकर्स, फिल्टर्स और ई-कार्ड्स खूब ट्रेंड कर रहे हैं।
3. महिलाओं के लिए विशेष ट्रेनें और छूट:
रेलवे विभाग ने घोषणा की है कि रक्षाबंधन के अवसर पर महिलाओं के लिए विशेष ट्रेनें और किराए में छूट दी जाएगी। उत्तर भारत के राज्यों में विशेष “राखी एक्सप्रेस” चलाई जा रही है।
4. भाईयों के लिए हेल्थ गिफ्ट्स का ट्रेंड:
हाल ही की मार्केट रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, इस बार बहनें अपने भाइयों को मिठाइयों के बजाय हेल्थ गिफ्ट्स (जैसे फिटनेस बैंड, हेल्दी स्नैक्स, मल्टीविटामिन्स आदि) देना पसंद कर रही हैं।
इतिहास और महत्व
Raksha Bandhan का पर्व भारत की उन सांस्कृतिक परंपराओं में से एक है जिसकी जड़ें वैदिक काल तक फैली हुई हैं। “रक्षाबंधन” शब्द दो भागों से मिलकर बना है – ‘रक्षा’ यानी सुरक्षा और ‘बंधन’ यानी बंधन या संबंध। यह सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि भावनाओं का बंधन है जो भाई और बहन के रिश्ते को सम्मान, स्नेह और जिम्मेदारी से जोड़ता है।
वैदिक काल में रक्षासूत्र का महत्व
ऋग्वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों में “रक्षासूत्र” का उल्लेख मिलता है। उस समय यज्ञ आदि के दौरान यजमान की कलाई पर रक्षासूत्र बांधा जाता था, जिससे उसकी रक्षा ईश्वर करें। धीरे-धीरे यह रक्षासूत्र सामाजिक जीवन में भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के प्रतीक के रूप में अपनाया गया।
पौराणिक कथाओं में रक्षाबंधन:
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द्रौपदी और श्रीकृष्ण की कथा:
महाभारत में वर्णित है कि एक बार भगवान श्रीकृष्ण को हाथ में चोट लग गई थी। द्रौपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर कृष्ण के हाथ पर बांध दिया। कृष्ण ने इसे एक “राखी” की तरह लिया और वचन दिया कि वह जीवन भर द्रौपदी की रक्षा करेंगे। इसी प्रसंग से यह परंपरा और अधिक भावनात्मक और सामाजिक रूप से मजबूत हुई। -
इंद्राणी और इंद्रदेव की कथा:
भागवत पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार जब देवता और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था, तो देवताओं की जीत सुनिश्चित करने के लिए इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने उनके हाथ पर एक रक्षासूत्र बांधा। यह रक्षासूत्र शक्ति और सुरक्षा का प्रतीक बना और युद्ध में इंद्र की विजय हुई। यह कथा दर्शाती है कि रक्षासूत्र केवल भाई-बहन तक सीमित नहीं, बल्कि सार्वभौमिक सुरक्षा का प्रतीक है।
Raksha Bandhan केवल एक धार्मिक परंपरा या त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की आत्मा को दर्शाता है – जहाँ रिश्ते सिर्फ खून से नहीं, भावना और कर्तव्य से जुड़े होते हैं। इसका इतिहास वैदिक युग से लेकर आधुनिक समाज तक फैला है और इसने हर दौर में सुरक्षा, प्रेम और विश्वास का संदेश दिया है।
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