Puri Jagannath Rath Yatra 2025: भारत की आध्यात्मिक राजधानी पुरी में आज से भगवान जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध Rath Yatra 2025 का शुभारंभ हो गया है। लाखों श्रद्धालु, भक्ति और उल्लास के साथ, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दिव्य रथों को खींचने के लिए उमड़ पड़े हैं। यह आयोजन न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में आस्था, एकता और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस रथयात्रा के केंद्र में विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति हर 12 वर्ष में बदली जाती है? यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे ‘नवकलेवर’ कहा जाता है। इसके पीछे गहराई से जुड़ा है एक आध्यात्मिक रहस्य, जो भगवान के शरीर, चेतना और पुनर्जन्म की सनातन मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। आज हम जानेंगे कि रथयात्रा का महत्त्व क्या है, भगवान की मूर्ति हर 12 साल में क्यों बदली जाती है, और इस परंपरा का धर्म, संस्कृति और समाज से क्या गहरा संबंध है।
Puri Jagannath Rath Yatra 2025: रथयात्रा का महत्व
पुरी की रथयात्रा को भगवान के भक्तों का सबसे बड़ा उत्सव कहा जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने रथों पर सवार होकर आम जनता के बीच आते हैं।
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पवित्र अवसर पर सभी देशवासियों को मेरी ढेरों शुभकामनाएं। श्रद्धा और भक्ति का यह पावन उत्सव हर किसी के जीवन में सुख, समृद्धि, सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए, यही कामना है। जय जगन्नाथ! pic.twitter.com/vj8K6a0XKM
— Narendra Modi (@narendramodi) June 27, 2025
मंदिर के बाहर रथों पर भगवान के दर्शन करने का यह एकमात्र अवसर होता है। इस यात्रा को देखने और रथ खींचने के लिए लाखों लोग पुरी पहुंचते हैं। कहा जाता है कि भगवान का रथ खींचना पुण्य का काम है और इससे जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं।
हर 12 साल में क्यों बदली जाती है भगवान जगन्नाथ की मूर्ति?
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी से बनी होती है, और हर 12 साल में उसे बदलने की परंपरा निभाई जाती है। इस परंपरा को ‘नवकलेवर’ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है – नया शरीर। यह प्रक्रिया केवल मूर्ति बदलने की नहीं, बल्कि भगवान के एक नए स्वरूप में जन्म लेने की आध्यात्मिक मान्यता है।
महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी रत्नवेदी से उतरकर अपने रथ पर आरूढ़ हो चुके हैं। ‘पहांडी’ का यह अद्वितीय और मनोहारी दृश्य भक्तों के हृदय को भक्ति-रस से सराबोर करने वाला है।
आप सब भक्तगण भी महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी का पवित्र दर्शन करें।
जय जगन्नाथ 🙏#RathaJatra2025 #RathYatra2025 pic.twitter.com/KrSmrbG6C1
— Sambit Patra (@sambitswaraj) June 27, 2025
जब पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास में अधिकमास आता है, तब यह प्रक्रिया होती है। ऐसा हर 12, 19 या 8 साल में एक बार आता है, लेकिन सामान्यतः 12 साल में होता है। इस समय भगवान की मूर्तियों को पूरी तरह से बदला जाता है, लेकिन उनकी आत्मा को पुराने शरीर से निकालकर नए शरीर में स्थापित किया जाता है।
दारु-ब्रह्म की खोज
नई मूर्तियों के निर्माण के लिए जिस नीम के पेड़ की लकड़ी का उपयोग होता है, उसे दारु-ब्रह्म कहा जाता है। इसे खोजने के लिए पुरी से एक विशेष दल निकाला जाता है। यह दल परंपरागत लक्षणों के आधार पर पवित्र पेड़ को चुनता है। माना जाता है कि वह पेड़ अपने आप भगवान के संकेत से दिखता है।
मूर्ति निर्माण और आत्मा स्थानांतरण
दारु मिलने के बाद मंदिर परिसर में एक गुप्त स्थान पर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं। जब मूर्तियाँ तैयार हो जाती हैं, तब एक विशेष रात में मंत्रोच्चार के साथ पुरानी मूर्तियों से ब्रह्म तत्व यानी भगवान की आत्मा को निकालकर नई मूर्तियों में स्थापित किया जाता है।
ଭାବ ବିନୋଦିଆର ପହଣ୍ଡିର ଦୃଶ୍ୟ : ଅପରୂପ ଶୋଭାର ସମ୍ଭାର…ପହଣ୍ଡିରେ ଝୁଲିଝୁଲି ରଥ ଆଡକୁ ଅଗ୍ରସର ହେଉଛନ୍ତି ଦୀନଜନ ଶରଣ ରକ୍ଷଣ ମହାପ୍ରଭୁ ଶ୍ରୀଜଗନ୍ନାଥ
ଜୟ ଜଗନ୍ନାଥ 🙏❤️😍#RathYatra2025#RathaJatra2025#RathaJatra pic.twitter.com/ZajRWM5oFL
— ଓଡ଼ିଆ ଜଗତ (@odiajagat) June 27, 2025
यह काम केवल कुछ चुनिंदा पुजारी ही कर सकते हैं, जिन्हें इस कार्य की दीक्षा पहले से दी गई होती है। इस रस्म को गुप्त रखा जाता है और उस दौरान कोई बाहर नहीं रह सकता।
पुरानी मूर्तियों का सम्मान
पुरानी मूर्तियों को तोड़ा नहीं जाता, बल्कि उन्हें पुरी मंदिर परिसर में बने एक विशेष स्थान ‘कोइली वैकुंठ’ में दफनाया जाता है। वहां वे सदा के लिए विश्राम करती हैं। यह प्रक्रिया भगवान की मृत्यु नहीं, बल्कि एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने की तरह मानी जाती है।
नवकलेवर का आध्यात्मिक संदेश
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का हर 12 साल में बदलना यह संदेश देता है कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है। भगवान स्वयं यह परंपरा निभाकर हमें जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र को समझने का संकेत देते हैं। यह प्रक्रिया न केवल एक धार्मिक कृति है, बल्कि यह दर्शन और जीवन के गहरे सत्य से जुड़ी हुई है।
पुरी रथयात्रा और नवकलेवर का मेल
जब नवकलेवर की परंपरा आती है, तब रथयात्रा का आयोजन और भी विशेष हो जाता है। उस वर्ष रथ भी नए बनते हैं, मूर्तियाँ भी बदलती हैं और भक्तों की भावना भी कई गुना बढ़ जाती है। रथयात्रा और नवकलेवर का मेल श्रद्धा की चरम सीमा को छू जाता है।
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