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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: जाने निर्जला एकादशी के पौराणिक कथा के बारे में।

Nirjala Ekadashi Vrat Katha: जाने निर्जला एकादशी के पौराणिक कथा के बारे में।

Nirjala Ekadashi Vrat Katha

Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी व्रत भगवान विष्णु की पूजा और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है।

यह व्रत बिना जल के रखा जाता है, जो इसे सबसे कठिन एकादशी व्रतों में से एक बनाता है। इस व्रत के करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, पापों का नाश होता है, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

यह व्रत त्याग और समर्पण का प्रतीक है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मदद करता है। ऐसे में एकादशी के दिन व्रती को इस दिन भगवान विष्णु के कथा पढ़ना और सुन ना जरूर चाहिए । तो आइए जानते हैं निर्जला व्रत कथा के बारे में ।

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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी व्रत कथा

Nirjala ekadashi vrat katha

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार एक बार की बात है शौनक आदि 88000 ऋषि मुनि बड़ी श्रद्धा से एकादशी व्रत की कल्याणकारी और पाप नाशक रोचक कथाएं सुनकर आनंद का अनुभव कर रहे थे। तभी कुछ ऋषियों ने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत कथा सुनने की प्रार्थना की।

तब सूत जी ने कहा महर्षि व्यास से एक बार भीमसेन ने कहा हे पितामह भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रौपदी ,अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि एकादशी के दिन व्रत करते हैं और मुझे भी एकादशी के दिन अन्न खाने को मना करते हैं। मैं उनसे कहता हूं कि भाई मैं भक्ति पूर्वक भगवान की पूजा कर सकता हूं।और दान दे सकता हूं लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता।

इस पर महर्षि व्यास ने कहा है भीमसेन वे सही कहते हैं शास्त्रों में कहा गया है की एकादशी के दिन अन्न नहीं खाना चाहिए ।यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रत्येक माह की दोनों एकादशियों को अन्न ना खाया करो महर्षि व्यास की बात सुन भीमसेन ने कहा हे पितामह मैं आपसे पहले ही कह चुका हूं कि मैं एक दिन तो क्या एक समय भी भोजन किए बिना नहीं रह सकता तो मेरे लिए पूरे दिन का उपवास करना क्या संभव है।

यदि मैं प्रयत्न करूं तो वर्ष में एक एकादशी का व्रत अवश्य कर सकता हूं अतः आप मुझे कोई एक ऐसा व्रत बताइए जिसके करने से मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सके भीमसेन की बात सुन व्यास जी ने कहा हे पुत्र बड़े-बड़े ऋषि और महर्षियों ने बहुत से शास्त्र आदि बनाए हैं यदि कलयुग में मनुष्य में उनका आचरण करे तो अवश्य ही मुक्ति को प्राप्त होगा।

उनमें धन बहुत कम खर्च होता है उनमें से जो पुराने का सार है वह यह है कि मनुष्य को दोनों पक्षों की एकादशियों का व्रत करना चाहिए ।इससे उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है महर्षि व्यास ने कहा हे वायु पुत्र वृषभ संक्रांति और मिथुन संक्रांति के बीच में ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आती है उस दिन निर्जल व्रत करना चाहिए।

हालांकि इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन करते समय यदि मुख में जल चला जाए तो उसका कोई भी दोष नहीं है।लेकिन आचमन में 6 माशे से अधिक जल नहीं लेना चाहिए। इस आचमन से शरीर की शुद्ध हो जाती है आचमन में 6 माशे से अधिक जल मघपान के समान है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।

Nirjala ekadashi vrat katha

सूर्योदय से सूर्यास्त तक यदि मनुष्य जलपान ना करे तो उस से 12 एकादशियों के फल की प्राप्ति होती है द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठाना चाहिए। इसके बाद भूखे ब्राह्मण को भोजन कराए इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। ऋषि ने कहा हे भीमसेन स्वयं भगवान ने मुझसे कहा था कि इस एकादशी का पुण्य सभी तीर्थों और दान के बराबर है।

एक दिन निर्जला रहने से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें मृत्यु के समय भयानक यमदूत नहीं दिखाई देते हैं। बल्कि भगवान श्री हरि के दूत स्वर्ग से आकर उन्हें पुष्पक विमान पर बैठकर स्वर्ग को ले जाते हैं।

संसार में सबसे उत्तम निर्जला एकादशी का व्रत है। अतः यत्न पूर्वक इस एकादशी का निर्जल व्रत करना चाहिए इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। भीम ने बड़े साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया जिसके परिणाम स्वरुप प्रातः होते-होते वह अचेत हो गए।

तब पांडवों ने गंगाजल, तुलसी, चरणामृत, प्रसाद देकर उनकी मूर्छा दूर की। तभी से वर्ष भर की 24 एकादशियों का पूर्ण लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ ने निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी नाम दिया गया है।

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