Myopia Symptoms And Treatment- आज के डिजिटल युग में हर किसी के पास स्मार्टफोन या कोई ना कोई डिजिटल गैजेट जरूर है। हम सभी अपने दिन के अधिकांश समय में स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं। इसका सीधा असर हमारी सेहत के साथ आंखों पर पड़ता है।
बड़े तो मोबाइल का उपयोग करते ही हैं, छोटे बच्चे भी घंटों तक मोबाइल और टीवी की स्क्रीन से चिपके रहते हैं। इसके कारण आंखों का लाल होना, आंखी के आस पास खुजली, नींद की कमी जैसी बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं। बहुत ज्यादा स्क्रीन पर समय बिताने से मायोपिया का भी खतरा बढ़ रहा है।
अलग अलग देशों के वैज्ञानिकों ने भी मायोपिया के बढ़ते खतरे से सावधान होने को कहा है। वैज्ञानिकों ने छोटे बच्चों में स्क्रीन टाइम को बहुत ही कम करने को कहा है। उनके अनुसार रोज का एक घंटा स्मार्टफोन पर बिताना मायोपिया के खतरे को लगभग 20% तक बढ़ा सकता है।
एक अन्य रिसर्च के मुताबिक वर्ष 2050 तक पूरी दुनिया के लगभग 40% बच्चों में इस बीमारी के होने की संभावना जताई गई है, जोकि बेहद चिंताजनक है। इस पोस्ट में हम मायोपिया के बारे में जानने के साथ ही उसके लक्षणों और बचने के कुछ कारगर उपायों को बता रहे हैं।
Myopia Symptoms And Treatment- जानें आँखों की गंभीर समस्या मायोपिया के बारे में
क्या है मायोपिया (What is Myopia)
मायोपिया एक प्रकार की आंखों से संबंधित बीमारी है। इसे निकट दृष्टि दोष भी कहते हैं। इसमें व्यक्ति को पास की वस्तुएं तो ठीक से दिखाई देती हैं लेकिन दूर की वस्तुओं को मरीज ठीक से नहीं देख पाता। दूर की चीजें उसे काफी धुंधली दिखाई देती है।
उसे देखने के लिए चश्मे का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसमें लेंस का प्रयोग किया जाता है। मायोपिया में कॉर्निया में बदलाव हो जाता है, जिसके कारण रेटिना से वस्तु का प्रतिबिंब स्पष्ट नहीं बन पाता और चीजें साफ नजर नहीं आ पाती। बहुत ज्यादा स्मार्टफोन और कंप्यूटर के इस्तेमाल की वजह से यह बीमारी लगातार बढ़ती जा रही है।
इसीलिए आज आपको अधिकतर लोग चश्मा लगाए हुए दिखाई देते हैं। इनमें से अधिकतर में कोई ना कोई आंखों की समस्या होती ही है। WHO ने भी अपनी रिपोर्ट में इसके तेजी से बढ़ने की चेतावनी दी है।
मायोपिया के मुख्य लक्षण
अगर देखा जाय तो मायोपिया कोई बहुत खतरनाक समस्या नहीं है। कुछ उपायों से इसे कंट्रोल किया जा सकता है। मायोपिया के कुछ शुरुआती लक्षण (Main Symptoms of Myopia) निम्न होते हैं, जिन्हें पहचान कर आप इस बीमारी से बच सकते हैं।
- बार बार आंखों को सिकोड़ना और आंखों का लाल हो जाना
- लगातार आंखों और सिर में दर्द बने रहना
- रात के समय स्पष्ट दिखाई ना देना
- स्मार्टफोन, कंप्यूटर और टीवी देखते समय कुछ ही देर में आंख दर्द करना
- दूर की किसी भी वस्तु को देखते समय आंखों में पानी आना
स्क्रीन टाइम और मायोपिया में संबंध
डॉक्टर्स के अनुसार स्मार्टफोन और मायोपिया में गहरा संबंध है। जिन घरों में बच्चे और युवा अपना ज्यादा समय स्मार्टफोन और कंप्यूटर की स्क्रीन पर बिताते हैं, उनके अंदर मायोपिया की समस्या बढ़ने की संभावना ज्यादा होती है।
सिर्फ 1 घंटे के स्क्रीन टाइम से ही मायोपिया का खतरा 20% से 21% तक बढ़ सकता है। ऐसे में जो बच्चे और युवा 4 घंटे से लेकर 8 घंटे तक लगातार स्मार्टफोन, कंप्यूटर या टेलीविजन देखते हैं उनमें मायोपिया का खतरा कई गुना तक बढ़ जाता है।
कई बार सिर्फ स्क्रीन टाइम ही (Main Symptoms of Myopia) मायोपिया का प्रमुख कारण नहीं होता। मायोपिया कभी कभी आनुवंशिक भी हो सकता है। ज्यादा स्क्रीन टाइम से आंखो की अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।
इनमें आंखों की थकान, सिरदर्द, आंखों की नमी कम होना और धुंधला दिखाई देना भी शामिल है। हालांकि इनके खतरे को कम करने के लिए हमें अपने काम से बीच बीच में ब्रेक जरूर लेना चाहिए। इसके अलावा कई ऐसी आदतें भी हैं जो मायोपिया के खतरे को कम करती हैं।
कैसे कम करें मायोपिया
डॉक्टर्स और कई रिसर्चर के मुताबिक अधिकतर लोगों में मायोपिया स्मार्टफोन और डिजिटल गैजेट के ज्यादा इस्तेमाल से ही होता है। ऐसे में कुछ आदतों को अपनी लाइफस्टाइल में (How to Reduce Myopia) जरूर शामिल करना चाहिए।
आउटडोर गेम खेलें
डिजिटल गैजेट की दुनिया के बीच भी आउटडोर गेम्स की जरूरत कम नहीं हुई है। साइंटिस्ट भी घर के अंदर खेलने वाले मजेदार गेम की तुलना में खुले मैदान या पार्क में खेलने को जरूरी मानते हैं। वर्तमान समय में अधिकांश बच्चे स्मार्टफोन या कंप्यूटर पर घंटों तक बैठकर ऑनलाइन गेम्स खेलते रहते हैं।
जबकि स्मार्टफोन और पीसी पर गेम खेलने की तुलना में पार्क में खेलना और थोड़ी देर खुली हवा में टहलना काफी फायदेमंद होता है। ये हमारे शरीर को एक्टिव बनाता ही है, मूड को भी फ्रेश रखता है।
नींद पूरी करना
भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल के कारण आजकल लोग चैन से सो भी नहीं पा रहे हैं। इसका नतीजा है कि नींद पूरी ना होने से उनके अंदर डिप्रेशन, टेंशन जैसी बीमारी बहुत ही कम उम्र में बढ़ रही है। नींद पूरी करने के लिए हम सभी को सोने से लगभग 1 घंटे पहले अपने स्मार्टफोन, टैबलेट आदि को बिस्तर से दूर रख देना चाहिए।
बेड के बहुत नजदीक इन स्मार्ट गैजेट को नहीं रखना चाहिए। वहीं देर रात तक फोन पर बातचीत करने और चैटिंग करने वाले लोगों में भी नींद की कमी देखी गई है। लगातार स्मार्टफोन चलाने से नींद पूरी नहीं होती। इससे शरीर का बॉडी क्लॉक डिस्टर्ब हो जाता है और हमें सिरदर्द, डिप्रेशन जैसी समस्या का सामना करना पड़ता है।
सही चश्मे का इस्तेमाल
अगर आपको आंखों की कोई समस्या हो रही है तो तुरंत ही एक्सपर्ट डॉक्टर से मिलकर सही दवा या चश्मे का उपयोग करना चाहिए। इससे आप भविष्य में होने वाली गंभीर समस्या से बच सकते हैं।
थोड़ी देर पर ब्रेक लेना
मायोपिया के खतरे को कम करने का सबसे आसान तरीका है कि हर कुछ मिनट या 1 घंटे पर 10 से 15 मिनट का ब्रेक लें। काम से ब्रेक लेने के दौरान यह जरूर ध्यान दें कि आप किसी भी डिजिटल गैजेट का इस्तेमाल ना करें। इस दौरान आप छत पर या खुले में टहल सकते हैं। पानी पीने के साथ हल्का नाश्ता कर सकते हैं या किसी स्थान पर शांत बैठ सकते हैं।
पलकों को बार बार झपकाएं
जब भी आप स्मार्टफोन यूज कर रहे हों या कंप्यूटर पर कोई जरूरी काम कर रहे हों तो उस दौरान अपनी पलकों को बार बार झपकाते रहें। ऐसा करने से आपकी आंखों में नमी बनी रहेगी।
आंखों में नमी रहने से भी मायोपिया का खतरा काफी कम होता है। इसके अलावा आप जब भी कंप्यूटर के सामने काम कर रहे हों तो ब्लू स्क्रीन से प्रोटेक्ट करने वाले अच्छे एंटी ग्लेयर चश्मे का इस्तेमाल जरूर करें।
भारत में बढ़ रहा है मायोपिया
वर्तमान में अधिकांश घरों में छोटे बच्चों को मोबाइल देखने की आदत लग चुकी है। पेरेंट्स भी खाना खिलाने के बहाने से, कार्टून देखने के लिए या खुद के काम को पूरा करने के अपने बच्चों को स्मार्टफोन पकड़ा देते हैं। इसका असर छोटे छोटे बच्चों पर दिखाई दे रहा है।
एक बार मोबाइल की आदत लग जाने पर आपका बच्चा घंटों स्मार्टफोन देखता रहता है। इसका असर बच्चे के विकास पर भी पड़ रहा है। उनकी सोचने, समझने की क्षमता तो प्रभावित हो ही रही है। आंखों पर भी चश्मा लग रहा है। आजकल तो छोटे बच्चों के साथ युवाओं में भी घंटों स्मार्टफोन देखने की बुरी लत बढ़ती जा रही है।
एक रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2019 में सिर्फ भारत में ही कुल जनसंख्या के लगभग 21% आबादी में मायोपिया की समस्या पाई गई। पूर्वानुमान के अनुसार यह 2030 तक 30% से 32% तक बढ़ सकती है।
टेक्नोलॉजी के बढ़ते उपयोग के कारण साल 2040 तक इसमें लगभग 40 प्रतिशत की वृद्धि तो 2050 तक आधी आबादी के मायोपिया के ग्रस्त होने की संभावना व्यक्त की गई है। भारत में वर्तमान में 4 साल से लेकर 15 साल के बच्चों में यह समस्या तेजी से बढ़ रही है।
टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल से हम मायोपिया जैसी समस्या को एकदम से खत्म नहीं कर सकते। लेकिन अगर अपनी लाइफस्टाइल में थोड़ा बदलाव कर लें तो इसके खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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