Jagannath Rath Yatra 2025: आज से विश्वप्रसिद्ध Jagannath Rath Yatra 2025 का आधिकारिक शुभारंभ हो गया है। ओडिशा के पुरी में हर वर्ष की तरह इस बार भी इस धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव की शुरुआत ‘स्नान यात्रा’ से हुई, जो ज्येष्ठ पूर्णिमा के पावन अवसर पर मनाई जाती है। यह दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के विशेष स्नान उत्सव के रूप में जाना जाता है।
इस अवसर पर तीनों विग्रहों को सिंहासन से उतारकर विशेष मंच ‘स्नान वेदी’ पर लाया जाता है। इसके बाद श्रद्धा और विधिपूर्वक उन्हें 108 पवित्र कलशों से स्नान कराया जाता है। इन कलशों में गंगा जल, औषधियों से युक्त जल, चंदन और अन्य शुभ द्रव्यों का मिश्रण होता है। इस विशेष स्नान को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं और भगवान के इस दुर्लभ रूप का दर्शन करते हैं, जिसे आमतौर पर वर्ष में केवल एक बार ही देखा जा सकता है। यह स्नान न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि इसके साथ रथयात्रा की दिव्य प्रक्रिया की औपचारिक शुरुआत भी मानी जाती है।
Jagannath Rath Yatra 2025: जानिए स्नान यात्रा की विशेषता।
स्नान यात्रा के दिन तीनों भगवानों को सिंहासन से नीचे लाकर विशेष मंच पर विराजमान किया जाता है, जिसे ‘स्नान वेदी’ कहा जाता है। इसके बाद गंगा जल, चंदन मिश्रित जल और औषधियों से स्नान की प्रक्रिया शुरू होती है। यह स्नान 108 पवित्र कलशों से किया जाता है। इस भव्य आयोजन में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं, और इस नजारे को देखने के लिए देश-विदेश से भक्तों की भीड़ उमड़ती है।
स्नान के बाद बीमार क्यों होते हैं भगवान?
स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा ‘अनासर काल’ में चले जाते हैं। यह अवधि करीब 15 दिनों की होती है, जिसमें तीनों भगवानों को बीमार माना जाता है। इस काल में वे आम भक्तों को दर्शन नहीं देते। इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है।
अहमदाबाद में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा तैयारियां अंतिम चरण में, 27 जून को निकलेगी रथ यात्रा #RathYatra #JagannathYatra #Ahmedabad | @SHAGUFTADEV
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कहा जाता है कि एक बार भगवान के प्रिय भक्त माधव दास गंभीर रूप से बीमार हो गए थे। तब भगवान जगन्नाथ ने उनका कष्ट अपने ऊपर ले लिया। तभी से यह मान्यता है कि स्नान के बाद भगवान स्वयं बीमार हो जाते हैं और उन्हें विश्राम की आवश्यकता होती है। इस दौरान मंदिर के अंदर उनकी सेवा विशेष प्रकार से की जाती है।
‘फुलुरी तेल’ से होती है सेवा
अनासर काल के दौरान भगवान की सेवा में ‘फुलुरी तेल’ का विशेष महत्व होता है। इस औषधीय तेल से भगवान के शरीर की मालिश की जाती है ताकि वे शीघ्र स्वस्थ हो सकें। यह सेवा विशेष पुजारी वर्ग द्वारा की जाती है। इसके अलावा इस समय मंदिर में ‘चित्र रूप’ में भगवान की पूजा होती है।
रथयात्रा 27 जून को
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अनासर काल के बाद भगवान तीनों रथों में सवार होकर गुंडीचा मंदिर के लिए यात्रा करेंगे। इस वर्ष रथयात्रा 27 जून 2025, शुक्रवार को निकलेगी। यह दिन आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पड़ रहा है। भगवान जगन्नाथ ‘नंदीघोष’, बलभद्र ‘तालध्वज’ और देवी सुभद्रा ‘दर्पदलन’ रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करेंगे।
रथयात्रा का मार्ग और महत्व
रथयात्रा पुरी शहर की मुख्य सड़कों से होते हुए करीब 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडीचा मंदिर तक जाती है। यह यात्रा आठ दिन तक चलती है और इसके बाद भगवान पुनः ‘बहुदा यात्रा’ के माध्यम से अपने मुख्य मंदिर लौटते हैं। रथयात्रा का आयोजन सामूहिक आस्था, भक्ति और सेवा का प्रतीक है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं और रथ को खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
જમાલપુર જગન્નાથ મંદિરથી વાજતે ગાજતે ભગવાન જગન્નાથજીની જળયાત્રા નીકળી, 108 કળશમાં સાબરમતી નદીનું જળ ભરી, ભગવાનનો જળાભિષેક કરવામાં આવશે.#Jagannath #Jagannathyatra #rathyatra #ahmedabad pic.twitter.com/yz1Xj8TKI9
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पुरी जिला प्रशासन और ओडिशा सरकार ने रथयात्रा को सफलतापूर्वक संपन्न कराने के लिए व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की है। CCTV कैमरे, ड्रोन निगरानी, पुलिस बल की तैनाती और मेडिकल टीमों की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। यात्रियों की सुविधा के लिए विशेष ट्रेनें और हेल्प डेस्क भी लगाए गए हैं।
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