10 Hindu Festival Name: हिन्दू धर्म में वैसे तो बहुत सारे त्योहार हैं। सभी त्योहार या पर्व धर्म, मौसम और उत्सव से जुड़े हुए हैं। लेकिन हम यहां कुछ खास और महत्वपूर्ण त्योहारों की जानकारी देंगें तथा उनसे जुड़ी मान्यताओं और कहानियों के बारे में भी बताएंगे। इन त्योहारों को पूरे भारतवर्ष में बहुत ही उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।
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Hindu Festival Name और उनका महत्त्व
1. मकर संक्रांति:
मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होने लगता है। हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में आने वाला यह त्योहार देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाया जाता है।
दक्षिण में इसे पोंगल और पंजाब में लोहड़ी कहते हैं। इस दिन गाय को चारा देना, तिल-गुड़ खाना और पतंग उड़ाने का एक विशेष महत्व है।
हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई प्रमुख त्योहारों को मनाने की परंपरा है। इन्हीं में से एक है मकर संक्रांति। शास्त्रों में मकर संक्रांति पर स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। मकर संक्रांति पर खरमास (अधिकमास ) का भी समापन होता है और शादी-विवाह जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों पर लगी रोक हट जाती है।
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ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है। आइए आपको मकर संक्रांति से जुड़ी कुछ प्रमुख कथाओं के बारे में बताते हैं –
देवताओं का दिन
सूर्य का मकर राशि में प्रवेश यानी मकर संक्रांति दान, पुण्य की सबसे पावन तिथि है। इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण के समय को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को देवताओं की रात कहा गया है।
मकर संक्रांति एक तरह से देवताओं की सुबह होती है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध और अनुष्ठान का सनातन संस्कृति में बहुत महत्व है। पौराणिक कथा कहती है कि ये तिथि उत्तरायण की तिथि होती है।
भीष्म पितामह ने त्यागी थी देह
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। जब वे बाणों की शैया पर लेटे हुए थे, तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने मकर संक्रांति की तिथि पर ही अपना जीवन त्यागा था। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण में देह त्यागने वाली आत्माएं देवलोक चली जाती हैं या फिर उन्हें पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा मिल जाता है। (शास्त्रों के अनुसार)
2. महाशिवरात्रि:
Hindu Festival Name की लिस्ट में दूसरा नाम महाशिवरात्रि का आता है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महादेव का पवित्र त्योहार महाशिवरात्रि मनाया जाता है। यह हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्योहार होता है। इस दिन भगवान शंकर ( देवों के देव -महादेव ) की पूजा और आराधना की जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। इसी दिन उनका विवाह पार्वती से हुआ था। इसी दिन ज्योतिर्लिंग का भी प्राकट्य हुआ था, इसीलिए यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।
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महाशिवरात्रि की कथा के अनुसार; परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष जब प्रजापतियों के राजा बने, तो उन्होंने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया। इसमें सम्मिलित होने के लिए तीनों लोकों के अतिथियों को न्योता भेजा गया, सिर्फ भगवान भोले शंकर को नहीं बुलाया गया।
भगवान शिव राजा दक्ष के जमाई थे। लेकिन दक्ष को भोलेनाथ का अलबेला और मस्तमौला स्वभाव तनिक भी नहीं भाता था। जब शिव की अर्धांगिनी और दक्ष की पुत्री सती को पता चला कि उनके पिता ने यज्ञ का आयोजन किया है, तो उन्होंने भी उसमें सम्मिलित होने की इच्छा जताई।
लेकिन भोलेनाथ बिना आमंत्रण के यज्ञ में जाने को तैयार नहीं हुए। इसलिए सती को वहां अकेले ही जाना पड़ा।वह जैसे ही सभागृह में पहुंचीं, उन्हें शिव निंदा सुनाई दी। सती को देखकर भी उनके पिता नहीं रुके, वह शिव की बुराई करते रहे। सती ने अपने पिता को समझाने का प्रयास किया, लेकिन राजा दक्ष ने उनकी एक न सुनी।
सती अपना और अपने पति के अपमान को सहन नहीं कर पायी और वह यज्ञ स्थल पर बने अग्निकुंड में कूद गईं। सती के अग्निकुंड में कूदने का दुखद समाचार लेकर नंदी कैलाश पर्वत पहुंचे। भगवान शिव सती को बचाने के लिए यज्ञस्थल पर गए, लेकिन तब तक सब खत्म हो चुका था।
कैलाशपति ने क्रोधित होकर सती का शरीर उठा लिया और तांडव करने लगे। जिस दिन शिव ने तांडव किया था, वह फाल्गुन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी (चौदहवीं) तिथि थी। महापुराण के अनुसार वही खास तिथि महाशिवरात्रि के रूप में प्रसिद्ध हुई।
शिवरात्रि का अर्थ है शिव की रात। शास्त्र के अनुसार, वैसे तो हर सोमवार का दिन शिव की पूजा के लिए उपयुक्त होता है और हर महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होती है। परन्तु फाल्गुन में महीने में पड़ने वाली तिथि महाशिवरात्रि के दिन सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
महाशिवरात्रि के दिन देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में शिवभक्तों का जमावड़ा लगता है। इनके नाम हैं- सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, औंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर और घिष्णेश्वर। इसके अलावा देश भर के सभी शिव मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है।
हिंदू शैव संप्रदाय वालों के लिए यह सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान है। दुनिया के सभी शिवालयों में इस दिन अंधकार और अज्ञानता को दूर करने का संकल्प लिया जाता है। दिनभर उपवास रखकर शिवलिंग को दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराया जाता है।
शिवपुराण के अनुसार, इसी रात शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इसका मतलब हुआ, शिव और शक्ति या फिर पुरुष और आदिशक्ति यानी प्रकृति का मिलन। एक और मान्यता है कि इसी दिन बह्माण्ड की रचना हुई थी।
3. होली:
फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होली का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार होलिकादहन से प्रारंभ होता है और रंगपंचमी तक चलता है। पूरे देश में होली और रंगपंचमी को धूमधाम से मनाया जाता है।
मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली काफी प्रसिद्ध होती है। यह उत्सव वसंत के आगमन और विष्णु भक्त प्रहलाद की याद में मनाया जाता है। होली की ठंडाई, मिठाई और गीत के बीच रंगारंग माहौल होता है।
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होलिका दहन से जुड़ी मुख्य कहानियां और मान्यताएं
हिरण्यकश्यपु राक्षसों का राजा था। उसका पुत्र प्रह्लाद, भगवान विष्णु का परम भक्त था। राजा हिरण्यकश्यपु भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। जब उसे पता चला कि प्रह्लाद विष्णु भक्त है, तो उसने प्रह्लाद को पूजा करने से रोकने की कोशिश की।
लेकिन प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यपु प्रह्लाद को यातनाएं देने लगा। हिरण्यकश्यपु ने प्रह्लाद को पहाड़ से नीचे गिराया, हाथी के पैरों से कुचलने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया।
हिरण्यकश्यपु की होलिका नाम की एक बहन थी। उसे वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु के कहने पर होलिका प्रह्लाद को मारने के लिए उसे अपनी गोद में बैठाकर आग में प्रवेश कर कई। किंतु भगवान विष्णु की कृपा से तब भी भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई।
तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन होने लगा और होली का त्योहार मनाया जाने लगा।
शिवजी ने कामदेव को किया था भस्म
इंद्र ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया। कामदेव ने उसी समय वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव फैलाया, इससे सारे जगत के प्राणी काममोहित हो गए। कामदेव का शिव को मोहित करने का यह प्रयास होली तक चला।
होली के दिन भगवान शिव की तपस्या भंग हुई। उन्होंने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म कर दिया तथा यह संदेश दिया कि होली पर काम (मोह, इच्छा, लालच, धन, मद) इनको अपने पर हावी न होने दें। तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा प्रारंभ हुई।
इस घटना के बाद शिवजी ने माता पार्वती से विवाह की सम्मति दी। जिससे सभी देवी-देवताओं, शिवगणों, मनुष्यों में हर्षोल्लास फैल गया। उन्होंने एक-दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर जोरदार उत्सव मनाया, जो आज होली के रूप में घर-घर मनाया जाता है।
परंपरा के अनुसार जब लोग जलती होलिका की परिक्रमा करते हैं तो होलिका से निकलता ताप शरीर और आसपास के पर्यावरण में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट कर देता है। इस प्रकार यह शरीर तथा पर्यावरण को स्वच्छ करता है। दक्षिण भारत में जिस प्रकार होली मनाई जाती है, उससे यह अच्छे स्वस्थ को प्रोत्साहित करती है।
वैज्ञानिक कारण
होली का त्योहार साल में ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग में नींद की कमी और आलस भरा होता है। ठंडे मौसम से गर्म मौसम को अपनाने के कारण शरीर में थकान और सुस्ती महसूस करना प्राकृतिक है। शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं बल्कि बोलते भी थोड़ा जोर से हैं।
इस मौसम में बजाया जाने वाला संगीत भी बेहद तेज होता है। ये सभी बातें मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त रंग और अबीर (शुद्ध रूप में) जब शरीर पर डाला जाता है तो इसका उस पर अनोखा प्रभाव होता है।
कुछ वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि रंगों से खेलने से स्वास्थ्य पर इनका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि रंग हमारे शरीर तथा मानसिक स्वास्थ्य पर कई तरीके से असर डालते हैं। इन्हीं कारणों से होली का त्योहार Hindu Festival Name की लिस्ट में तीसरे नम्बर पर शामिल है।
4. गुड़ी पड़वा/उगादि या नवसंवत्सर:
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हिन्दुओं का नववर्ष प्रारंभ होता है। इस दिन संपूर्ण भारतवर्ष में उत्सव होता है। मिठाई का वितरण होता है और मांगलिक कार्य किया जाता है।
हर प्रांत में इसका नाम अलग-अलग है और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हैं। चैत्र माह हिन्दू कैलेंडर का प्रथम माह है।
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5. रामनवमी:
भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को हुआ था इसलिए इसे रामनवमी कहते हैं। यह दिन बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। यह बड़ी नवरात्रि पर्व का अंतिम दिन भी होता है। इस दिन पूरे देश में उत्सव का माहौल रहता है।
चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन रामनवमी मनाई जाती है और देशभर में यह उत्सव मनाया जाता है। भगवान विष्णु के सातवें अवतार श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है क्योंकि दशरथ नंदन को श्रेष्ठ पुरुषों की संज्ञा दी गई है।
भगवान राम ने एक आदर्श चरित्र प्रस्तुत कर समाज को एक सूत्र में बांधा था। आइए रामनवमी के मौके पर भगवान राम से जुड़ी कुछ रोचक बाते जानते हैं, जिनको बेहद ही कम लोग जानते हैं…
- इन महान ऋषि ने करवाया था पुत्रेष्टि यज्ञ
ऋषि श्रृंगी बेहद ऋषि बेहद ज्ञानी, सिद्धि और तपस्वी थी। रामायण काल के ऋषि श्रृंगी ने ही राजा दशरथ को संतान प्राप्ति ना होने पर पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी थी, जिसके बाद राजा दशरथ ने इस यज्ञ को करवाया था।
यज्ञ के बाद ही भगवान राम का जन्म दशरथ के यहां हुआ था। यह आश्रम में बिहार के लखीसराय में बताया जाता है। कुछ मान्यताओं के पास आगरा के पास भी ऋषि श्रृंगी का आश्रम है।
- इन्होंने करवाया था भगवान राम का नामकरण
रघुवंशियों के गुरु महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम का नामकरण किया था। गुरु वशिष्ठ ने बताया कि राम दो अग्नि बीज, अमृत बीज और दो बीजाक्षरों से मिलकर बना शब्द है।
राम नाम लेने भर से आत्मा पवित्र हो जाएगी और आत्मा, शरीर और दिमाग में शक्ति और सुकून मिलेगा।
- यहां हुआ था भगवान श्रीराम का मुंडन
नामकरण के बाद अयोध्या में यह बात शुरू हुई कि आखिर राम समेत सभी बच्चों का मुंडन कहां करवाया जाएगा। तब गुरु वशिष्ठ से सलाह मांगी गई।
गुरु वशिष्ठ ने ऋषि श्रृंगी के आश्रम में सभी बच्चों का मुंडन करने को कहा। तब दशरथ समेत सभी रानियां और बच्चे ऋंगी ऋषि के आश्रम में पहुंचे। तब राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का मुंडन करवाया गया।
- माता कौशल्या को दिखाया था चतुर्भुज रूप
आपको पता है कि जन्म लेने से पहले भगवान विष्णु ने माता कौशल्या को चतुर्भुज रूप के दर्शन करवाए थे। तब माता कौशल्या ने भगवान से प्रार्थना की हे भगवान मैं आपके बाल रूप को देखने के लिए बहुत आतुर हूं। माता कौशल्या के शब्दों में – ‘कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख पर अनूपा।’
प्रभु आप चतुर्भुज रूप को त्याग कर सबको सुख देने वाली बाल लीलाएं करें। तब भगवान विष्णु ने राम के रूप में जन्म लिया और लीलाएं की, जिसका वर्णन रामचरित मानस में मिलता है।
- इस तरह हुए चार भाई
एक मान्यता के अनुसार भगवान राम के चार भाई इसलिए हुए क्योंकि जब यज्ञ कुंड से अग्नि देव खीर लेकर प्रकट हुए तो कौशल्या और कैकेयी ने अपने-अपने हिस्से के खीर में से थोड़ा थोड़ा सुमित्रा को खिला दिया। इसलिए सुमित्रा के दो पुत्र हुए।
इसलिए राजा दशरथ को तीन रानियों से चार पुत्र प्राप्त हुए। मान्यता है कि इस खीर की कटोरी को एक कौआ लेकर उड़ गया था उसमें लगे कुछ दानों को अंजना ने खा लिया था। इसी से हनुमानजी का भी जन्म हुआ था।
6. ओणम:
राजा महाबली या बलि से जुड़ा यह पर्व खासकर दक्षिण भारत में दीपावली की तरह मनाया जाता है। महाबली से ही विष्णु के अवतार वामन ने तीन पग धरती मांगी थी। सदियों से ऐसी मान्यता चली आ रही है कि ओणम के दिन राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, इसी खुशी में ओणम पर्व मनता है।
7. रक्षाबंधन:
श्रावण माह की पूर्णिमा को भाई-बहन का त्योहार रक्षाबंधन मनाया जाता है। यह त्योहार राजा महाबली, इंद्र और यम से जुड़ा हुआ है। इस दिन भाई को बहनें राखी बांधती हैं जिसे रक्षा सूत्र भी कहते हैं। भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देता है। इस दिन अच्छे-अच्छे पकवान और मिठाइयां बनाई जाती हैं।
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8. कृष्ण जन्माष्टमी:
भाद्रपद माह की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था इसीलिए इसे जन्माष्टमी कहते हैं। इस जन्मोत्सव को बहुत ही सुंदर तरीके से नाच-गाकर मनाया जाता है। तरह-तरह के पकवान खाए जाते हैं और पूरे भारत में एक उत्सव का माहौल होता है।
9. गणेश चतुर्थी:
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेशजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। गणेश स्थापना चतुर्थी और विसर्जन चतुर्दशी तक चलने वाले इस त्योहार की पूरे देश में धूम रहती है। कहीं-कहीं यह उत्सव 3 दिन तक ही चलता है जबकि मूल रूप से यह 10 दिन का उत्सव है।
महाराष्ट्र में इस त्योहार को बहुत ही खास तरीके से और विधि पूर्वक मनाया जाता है।
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10. नवरात्रि:
नवरात्रि का त्योहार वर्ष में 2 बार आता है- पहला चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को आने वाली नवरात्रि का ही महत्व है। इस दिन नृत्य और उत्सव के साथ ही दुर्गा की पूजा की जाती है। 9 दिन तक चलने वाला यह त्योहार सभी के मन में उत्साह, साहस और खुशियां भर देता है।
11. दीपावली:
कार्तिक माह की अमावस्या को प्रकाश के इस प्रमुख उत्सव को कई कारणों से मनाया जाता है। यह त्योहार भी धनतेरस से 2 दिन पहले प्रारंभ होता है। हालांकि इसकी शुरुआत दशहरा से ही हो जाती है। इस बीच नरक चतुर्दशी, दीपावली, भैया दूज और गोवर्धन पूजा का त्योहार भी मनाया जाता है।
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इस दिन दीया जलाने, घर की सजावट करने, रंगोली बनाने, नए वस्त्र पहनने, खरीददारी करने, आतिशबाजी, काली, कृष्ण और लक्ष्मी की पूजा करने, उपहार लेने-देने, पकवान और मिठाइयां बांटने की परंपरा रहती है।
हमने आपको इस पोस्ट के माध्यम से भारतवर्ष मे मनायें जाने वाले कुछ प्रमुख त्योहारों के बारे में बताने का प्रयास किया है। हमारा प्रयास रहेगा कि हम ऐसी ही ज्ञानवर्धक लेख से आपको जागरूक करते रहें।
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