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Shardiya Navratri 2025 Durga Puja Ka Mahatva- आखिर क्यों की जाती है देवी दुर्गा की पूजा, जानें महत्व

Shardiya Navratri 2025 Durga Puja Ka Mahatva- आखिर क्यों की जाती है देवी दुर्गा की पूजा, जानें महत्व

Navratri Vrat During Periods

Shardiya Navratri 2025 Durga Puja Ka Mahatva- नवरात्रि, जिसका शाब्दिक अर्थ नौ रातें है, एक ऐसा पर्व है जो भारत के विभिन्न हिस्सों में नौ रातों और दस दिनों तक मनाया जाता है। यह पर्व देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए समर्पित है।

इन नौ रातों और दस दिनों में, देवी दुर्गा, देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति और शक्ति की उपासना का एक गहरा संगम है। यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है – चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। ये दोनों ही समय ऋतु परिवर्तन के होते हैं, जब प्रकृति एक नए रूप में ढल रही होती है।

इस दौरान नौ दिनों तक देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है, जिसे ‘शक्ति’ की उपासना कहा जाता है। इस आराधना का न केवल गहरा आध्यात्मिक महत्व है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हैं जो इसे और भी प्रासंगिक बनाते हैं।

Shardiya Navratri 2025 Durga Puja Ka Mahatva- शक्ति की आराधना का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व

Shardiya navratri 2025 durga puja ka mahatva

आध्यात्मिक महत्व: आत्म-शुद्धि और ऊर्जा का जागरण (Spiritual Significance of Navratri)

आध्यात्मिक दृष्टि से, नवरात्रि आत्म-निरीक्षण और आंतरिक शुद्धि का पर्व है। ‘नव’ का अर्थ है नौ और ‘रात्रि’ का अर्थ है रातें। ये नौ रातें अंधकार पर प्रकाश की, अज्ञान पर ज्ञान की और तामसिक प्रवृत्तियों पर सात्विक गुणों की विजय का प्रतीक हैं।

नवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। यह पर्व हमें आंतरिक शक्ति, पवित्रता और ज्ञान की ओर ले जाने का मार्ग दिखाता है।

  • शक्ति की जागृति: नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जो कि अलग-अलग शक्तियों का प्रतीक हैं। ये नौ रूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं। इन रूपों की पूजा करके हम अपने अंदर छिपी हुई शक्ति को जागृत करने का प्रयास करते हैं। यह हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करता है।
  • त्रिगुणात्मक प्रकृति पर विजय: पहले तीन दिन तमस (अशुद्धि, अंधकार) को नष्ट करने के लिए देवी दुर्गा के उग्र स्वरूपों (काली, चंडी) की पूजा की जाती है। अगले तीन दिन रजस (कामना, क्रिया) को संतुलित करने के लिए देवी लक्ष्मी के स्वरूपों की आराधना होती है, जो भौतिक और आध्यात्मिक धन प्रदान करती हैं। अंतिम तीन दिन सत्व (ज्ञान, पवित्रता) को बढ़ाने के लिए ज्ञान की देवी सरस्वती की उपासना की जाती है। इस प्रकार, यह पर्व व्यक्ति को तामसिक और राजसिक गुणों से ऊपर उठाकर सात्विक गुणों को अपनाने की प्रेरणा देता है।
  • मंत्र और ध्यान: नवरात्रि के दौरान मंत्रों का जाप, दुर्गा सप्तशती का पाठ और ध्यान का विशेष महत्व है। इन अभ्यासों से मन एकाग्र होता है, नकारात्मक विचार समाप्त होते हैं और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मंत्रों की ध्वनि तरंगें वातावरण को शुद्ध करती हैं और साधक के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालती हैं, जिससे उसे आंतरिक शांति और शक्ति का अनुभव होता है।
  • त्रिदेवियों की पूजा: नवरात्रि में तीन प्रमुख देवियों – दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा की जाती है। पहले तीन दिन देवी दुर्गा की पूजा होती है, जो कि तमो गुण को खत्म करके हमारी नकारात्मक शक्तियों को दूर करती हैं। अगले तीन दिन देवी लक्ष्मी की पूजा होती है, जो रजो गुण का प्रतीक हैं। यह हमें धन, समृद्धि और भौतिक सुख की ओर ले जाती है। अंतिम तीन दिन देवी सरस्वती की पूजा होती है, जो सतो गुण का प्रतीक हैं। यह हमें ज्ञान, कला और बुद्धि प्रदान करती हैं।
  • अहंकार पर विजय: नवरात्रि का दसवां दिन विजयदशमी कहलाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था और देवी दुर्गा ने महिषासुर का। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने अहंकार, क्रोध और नकारात्मक विचारों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए।

वैज्ञानिक महत्व: शरीर और पर्यावरण का कायाकल्प (Scientific Importance of Navratri)

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नवरात्रि का पर्व जिस समय आता है, वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह ऋतु परिवर्तन का समय होता है, जब हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) सबसे कमजोर होती है।

ऐसे में व्रत और सात्विक आहार शरीर को नई ऋतु के लिए तैयार करने में मदद करते हैं। नवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी हैं जो इसे हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए लाभदायक बनाते हैं।

मौसम परिवर्तन और उपवास: नवरात्रि का पर्व साल में दो बार आता है – एक बार चैत्र (मार्च-अप्रैल) में और दूसरी बार शरद ऋतु (सितंबर-अक्टूबर) में। ये दोनों समय मौसम में बदलाव का होता है, जब हमारा शरीर बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील होता है।

इस दौरान उपवास रखने से शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद मिलती है। उपवास के दौरान अनाज से बनी चीजों का सेवन कम किया जाता है और फलों, सब्जियों और डेयरी उत्पादों का अधिक सेवन किया जाता है, जो पाचन तंत्र को आराम देता है और शरीर
की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

शरीर का शुद्धिकरण (Detoxification): नवरात्रि के दौरान रखा जाने वाला व्रत एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इस समय अनाज, मांसाहार, प्याज, लहसुन और भारी मसालों का त्याग किया जाता है और फलाहार (फल, सब्जियां, कुट्टू, सिंघाड़ा) को अपनाया जाता है।

यह आहार सुपाच्य होता है और पाचन तंत्र को आराम देता है। इससे शरीर में जमा हुए विषाक्त पदार्थ (Toxins) बाहर निकल जाते हैं और शरीर का आंतरिक रूप से शुद्धिकरण होता है।

इम्युनिटी को बढ़ावा: ऋतु परिवर्तन के समय वात, पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। व्रत के दौरान हल्का और सात्विक भोजन करने से पाचन तंत्र पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता।

इससे शरीर की ऊर्जा, आंतरिक मरम्मत और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने में लगती है। नींबू पानी, फल और मेवों का सेवन शरीर को आवश्यक विटामिन और मिनरल्स प्रदान करता है।

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मानसिक स्वास्थ्य में सुधार: वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि उपवास का मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह न्यूरोट्रांसमीटर (जैसे सेरोटोनिन) के स्तर को संतुलित करता है, जिससे तनाव और अवसाद कम होता है। ध्यान और मंत्रोच्चार से मन शांत होता है, एकाग्रता बढ़ती है और मानसिक स्पष्टता आती है।

पर्यावरणीय शुद्धि: नवरात्रि के दौरान घरों में यज्ञ और हवन करने की परंपरा है। घी, कपूर और अन्य औषधीय जड़ी-बूटियों के जलने से उत्पन्न धुआं वातावरण में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करता है। इससे वायु शुद्ध होती है और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

पर्यावरण से सामंजस्य: नवरात्रि का पर्व हमें प्रकृति के साथ जुड़ने का मौका देता है। इस दौरान लोग सात्विक भोजन करते हैं, जिसमें प्याज, लहसुन और मांसाहार का त्याग किया जाता है। इससे न केवल शरीर शुद्ध होता है बल्कि पर्यावरण में भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

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मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: नवरात्रि के दौरान किए जाने वाले गरबा और डांडिया जैसे पारंपरिक नृत्य शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देते हैं। इससे कैलोरी बर्न होती है और शरीर में रक्त संचार बेहतर होता है। इसके अलावा, ध्यान और पूजा-पाठ से मानसिक शांति मिलती है और तनाव कम होता है। यह एक प्रकार का सकारात्मक मनोविज्ञान है, जो हमें खुद से जोड़ता है।

पौष्टिक आहार: नवरात्रि के दौरान उपवास में खाए जाने वाले खाद्य पदार्थ, जैसे कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, फल और सब्जियां, पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। ये शरीर को ऊर्जा देते हैं और पाचन में सहायक होते हैं। नवरात्रि एक ऐसा पर्व है जो हमें आध्यात्मिकता और विज्ञान के बीच संतुलन सिखाता है।

यह न केवल हमें अपनी धार्मिक परंपराओं से जोड़ता है, बल्कि हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है। उपवास, ध्यान और पारंपरिक नृत्यों के माध्यम से यह हमें एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित करता है।

नवरात्रि सिर्फ देवी की पूजा का पर्व नहीं, बल्कि अपने आप को बेहतर बनाने, आंतरिक शक्ति को पहचानने और जीवन को एक नई ऊर्जा से भरने का पर्व है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति बाहरी नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही निवास करती है। नवरात्रि केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली है जो आध्यात्मिकता और विज्ञान का अद्भुत संतुलन प्रस्तुत करती है।

यह पर्व हमें सिखाता है कि शक्ति की सच्ची आराधना केवल बाहरी पूजा-पाठ में नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धि, आत्म-अनुशासन और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने में निहित है। यह शरीर को निरोगी, मन को शांत और आत्मा को जागृत करने का एक सुनहरा अवसर है।


इमेज क्रेडिट: iStock

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