Interesting Facts About Red Fort: लाल किला एक ऐसी इमारत जिसकी तकदीर मानो वक्त ने खुद अपने हाथों से लिख दी हो। पुराने हिंदुस्तान को आज का हिंदुस्तान बनने में जितने जमाने लगे और जो-जो कहानी गढ़ी गईं, दिल्ली का लाल किला उनका गवाह बना। पिछली चार सदीयों में इस इमारत ने इतिहास को न जाने कितनी ही बार करवटें बदलते देखा है। इस इमारत ने गुजरते दौर और बदलते जमाने देखे हैं। आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपको लाल किले के बारे मेें कुछ अनोखे फैक्ट बताएंगे।
Interesting Facts About Red Fort: जानिये दिल्ली के लाल किले के बारे में कुछ अनोखे फैक्ट्स?
1.लाल किले का नाम
दिल्ली के इस लाल किले का यह जो नाम है लाल किला यह नाम किले की इन बड़ी सी लाल पत्थर से बनी बाउंड्री वॉल की वजह से पड़ा है और यह नाम शायद 19वीं सदी में अंग्रेजों के जमाने से पड़ा है, वह अंग्रेजी थे जिन्होंने इसे रेड फोर्ट कहना शुरू किया था। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसके लिए का असली नाम किला ए मुबारक है यह नाम शाहजहां द्वारा दिया गया था।
2.लाल किले का निर्माण
शाहजहां ने यह लाल किला बनवाने का तब सोचा जब उन्होंने यह फैसला किया कि अब मुगल साम्राज्य की राजधानी आगरा से दिल्ली कर दी जाए। अकबर के जमाने में मुगलों की राजधानी आगरा थी अकबर को दिल्ली इतनी पसंद नहीं थी क्योंकि दिल्ली अकबर को अपने पिता हुमायूं की शेरशाह सूरी से हुई हार याद दिलाती थी।
लेकिन शाहजहां आगरा की गर्मी से परेशान थे और उसने दिल्ली वापस आने का मन बना लिया उसने तय किया कि मुगल साम्राज्य की राजधानी अब दिल्ली होनी चाहिए। दिल्ली में शाहजहां ने एक शहर बसाया जिस नाम दिया गया शाहजहानाबाद इसे पुरानी दिल्ली भी कहा जाता है। इसी शहर के बीच में भव्य लाल किले का निर्माण शुरू हुआ।
और 1638 में शाहजहां ने लाल किला बनवाने का हुक्म दिया और पूरे 10 साल बाद 1648 में लाल किला बनकर तैयार हुआ। जब लाल किला बनकर तैयार हुआ उस वक्त शाहजहां अफगानिस्तान के काबुल में थे जब उन्हें यह खबर दी गई तब बादशाह वहां से फौरन दिल्ली वापस आ गए।
3.दो मुख्य दरवाजे
लाल किले के दो मुख्य दरवाजे हैं। दिल्ली दरवाजा और लाहौरी दरवाजा दिल्ली दरवाजे के जरिए ही शाहजहां नमाज के लिए जामा मस्जिद जाया करते थे। लेकिन बाद में औरंगजेब ने लाल किले के अंदर ही अपने और अपनी बेगम के लिए निजी मस्जिद बनवा लिया जिसे मोती मस्जिद कहा जाता है।
दिल्ली दरवाजा तो अब आम जनता के लिए खुला नहीं है सिर्फ लाहौरी दरवाजे के जरिए ही लोग किले के अंदर जा सकते हैं लाहौरी दरवाजे का नाम लाहौरी दरवाजा इसलिए पड़ा क्योंकि मुगलों के जमाने में तीन शहर ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टि से बड़े ही महत्वपूर्ण थे दिल्ली आगरा और लाहौर। आपको बता दे इस दरवाजे का जो फ्रंट है वह लाहौर शहर की तरफ है इसीलिए इसे लाहौरी दरवाजा कहा जाता है।
4. घूंघट वाली दीवार
इस लाहौरी दरवाजे के सामने औरंगजेब ने ने एक बड़ी सी दीवार बनवा दी थी जिसका नाम है जिसे घूंघट वाली दीवार कहां जाता है लाहौरी दरवाजा चांदनी चौक के बिल्कुल सामने पड़ता है और इस दरवाजे से दीवान ए आम साफ दिखाई पड़ता है जो की बादशाह के बैठने की जगह हुआ करती थी।
इसीलिए लोगों को बादशाह की अदब के लिहाज से चांदनी चौक पर पैदल चलना पड़ता था यह दुविधा खत्म करने के लिए औरंगजेब ने लाहौरी दरवाजे के सामने यह दीवार बनवा दी थी। शाहजहां को औरंगजेब की यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी कहा जाता है की चांदनी चौक पर खड़े होकर अगर कोई लाल किले को देखता था तब सामने लहरी दरवाजा बाद ही सुंदर दिखाई पड़ता था लेकिन बाद में दीवार बन जाने के बाद वह उतना भव्य नहीं रहा जब यह दीवार बनवाई गई।
5.किले का मीना बाजार
लाहौरी दरवाजे से अंदर जाते ही लाल किले का मीना बाजार शुरू हो जाता है जिसे छत्ता बाजार भी कहते हैं यह बाजार शाहजहां ने अपनी बेगमों के लिए बनवाया था किले में जिन चीजों का इस्तेमाल होता था उसे तरह का सामान इस बाजार में मिलता था एक जमाना था जब अब और पारस जैसे देशों से व्यापारी यहां आते थे और शाहजहां की बेगमों को सामान बेचते थे। आपको बता दे कि यह बाजार 350 साल बाद आज भी उन्ही रंगीनियों के के साथ जिंदा है और आज भी लोग यहां से तरह-तरह का सामान खरीद कर लेकर जाते हैं।
6.नौबत खाना
छत्ता बाजार खत्म होते ही सामने नौबत खाना पड़ता है नौबत खाने की ऊपरी मंजिल पर संगीतकार बैठते थे और यहां दिन में पांच बार नौबत बस्ती थी अलग-अलग वक्त को बतलाने के लिए नौबत खाने में बादशाह के आने की घोषणा करने के लिए भी नौबत बजाई जाती थी। इसी नौबत खाने के अंदर 9वें मुगल बादशाह जहांदार शाह और फर्रूख सियर का कत्ल किया गया था।
7.दीवान-ए-आम
नाम सुनकर ही पता चल जाता है दीवान-ए-आम यानी एक ऐसा शाही दरबार जो आम लोगों के लिए लगता था। दीवान-ए-आम में मौजूद सिंहासन पर बैठकर बादशाह आम लोगों की समस्याएं सुनते थे और उनका समाधान करते थे बादशाह के इस सिंहासन को नशेमन-ए-जिल्ल-ए-इलाही कहा जाता था। यानी ऐसा स्थान जिसपर ईश्वर की छाया हो। और इस सिंहासन के नीचे एक संगमरमर का बड़ा सा सुंदर तख्त भी रखा हुआ है जिस पर खड़े होकर वजीर खड़े होकर बादशाह को आम लोगो कि समस्याएं सुनता था।
8.दीवान- ए-ख़ास
एक ऐसा दरबार जहां बादशाह अपने खास लोगों से मिला करते थे जैसे की बादशाह के मंत्री सलाहकार और उनके मेहमान वगैरह। दीवान ए खास की यह पूरी इमारत संगमरमर की बनी हुई है और इसी दीवाने खास में बादशाह का वह आलीशान सिंहासन रखा हुआ था। जिसके चर्चे सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी थे।
9.तख्त-ए-ताऊस (peacock throne)
बादशाह के सिंहासन का नाम था तख्त-ए-ताऊस यानी (peacock throne) पीकॉक थ्रोन सोने, चांदी और हीरे जवारत से बना हुआ सिंहासन था इसके ऊपर सिरे पर हीरे मोतियों से बने दो मोर थे और इसी पीकॉक थ्रोन में भारत का सबसे बेश कीमती हिरा कोहिनूर जढ़ा हुआ था। आपको बता दे पीकॉक थ्रोन की कीमत 17वीं सदी में भी करोड़ों में आकी गई थी।
1739 में ईरान का बादशाह नादिर शाह भारत आया और उसने दिल्ली पर हमला बोल दिया उसकी सेनन ने दिल्ली को जमकर लूटा और वह लाल किले की कई देश कीमती चीजों के साथ पीकॉक थ्रोन और कोहिनूर हीरा भी लूट कर ले गया। कहा जाता है कि दिल्ली को लूटने के बाद जब नादीर शाह और उसकी सेना ईरान वापस जा रही थी तो रास्ते में उन पर लुटेरों ने हमला कर दिया और कई चीज लुट ली उन में से एक पीकॉक थ्रोन भी था। इसके लोगों ने कई टुकड़े कर दिए और आपस में बांट लिया।
कहां जाता है कि पीकॉक थ्रोन के टूटे हुए निचले हिस्से को आखरी बार तेहरान (ईरान) के एक म्यूजियम में देखा गया था। दीवान ए खास लाल किले का सबसे खूबसूरत महल हुआ करता था इसके खूबसूरती का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस महल की पूरी छत चांदी की हुआ करती थी और बाद में उसे चांदी की छत को निकाल लिया गया इसकी संगमरमर की दीवारों पर जगह-जगह कीमती पत्थर और नगिने जड़े हुए थे जिन्हें लोग निकल कर ले गए अब उनके सिर्फ निशान बाकी हैं।
10. नहरे-ए-बहिश्त
इस नहर को शाहजहां ने जन्नत की परिकल्पना पर बनाया था नहरे-ए-बहिश्त जब महलों के अंदर से होते हुए बाग बगीचों के पास से बहती थी तब मानों स्वर्ग सा एहसास कराती थी। इसकी बहाने से पानी की बड़ी मधुर आवाज पैदा होती थी नहरे भविष्य में फब्बारे बने हुए थे। इससे निकलते फब्बारे मानो गर्मियों में भी सावन का अहसास करवाते थे।
वैसे तो नहरे-ए-बहिश्त लाल किले के अंदर कई जगह से बहती थी लेकिन इसे महलों के बीच में से इसलिए बनाया गया था ताकि नहर के पानी से महलों के अंदर ठंडक रहे इसमें पानी यमुना नदी के द्वारा आता था।
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