Dwarkadhish Temple: द्वारका भारत के राज्य गुजरात में स्थित प्राचीन शहर माना जाता है और यहां पर स्थित है द्वारकाधीश मंदिर।द्वारिका नगरी को बसाने का श्रेय परब्रह्म, निराकार, निर्विचार, द्वारकाधीश श्री भगवान कृष्ण को जाता है। क्योंकि इसके पीछे कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई, जिसके परिणाम स्वरुप भगवान श्री कृष्ण को मथुरा छोड़कर द्वारका की ओर जाना पड़ा और एक नई नगरी द्वारका नवनिर्माण करना पड़ा। द्वारका नगरी एक पर्यटक स्थल होने के साथ ही यहां पर भगवान श्री कृष्ण का मंदिर भी है।
यह मंदिर लाखों करोड़ों भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व और आस्था का विषय है। यह भव्य प्राचीनतम मंदिर श्री भगवान कृष्ण को समर्पित है जिन्हें द्वारका का शासक भी कहा जाता है। यह प्राचीन मंदिर अपने आकर्षक वास्तुकला समृद्धि तथा सांस्कृतिक विरासत के साथ अत्यधिक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखता है।
आज के इस ब्लॉग पोस्ट में हम द्वारिकाधीश मंदिर के बारे में 10 अद्वितीय तथ्यों के बारे में बताएंगे जो इसको आध्यात्मिक और वास्तुशिल्प प्रेमियों के लिए एक रोचक स्थान बनाते हैं।
गुजरात के Dwarkadhish Temple से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य जो शायद आप नहीं जानते होंगे!
तो चलिए हम आज आपको गुजरात के प्राचीन शहर द्वारका में स्थित भव्य द्वारकाधीश मंदिर के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते हैं।
1. द्वारका – भगवान कृष्ण की नगरी
द्वारका के इतिहास के विषय में हमें जानकारी वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत से मिलती है। महाभारत के अनुसार द्वारका नगरी का निर्माण भगवान श्री कृष्ण ने इसलिए किया था क्योंकि मगध के राजा जरासंध के साथ श्री कृष्ण की शत्रुता थी। जिसके परिणाम स्वरुप जरासंध बार-बार परास्त होने पर मथुरा पर आक्रमण करता रहता था।
भगवान श्री कृष्णा ने राज्य के निवासियों की रक्षा के लिए गुजरात में द्वारका नामक नगरी की स्थापना की थी।
2. समृद्ध इतिहास
प्राचीन पुराणों और कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भारत के राज्य गुजरात के द्वारका शहर में स्थित द्वारकाधीश मंदिर अपने आप में एक समृद्ध इतिहास लिए हुए हैं जो कि कई हजारों साल पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि इस भव्य मंदिर का निर्माण ढाई हजार साल पहले भगवान कृष्ण के पुत्र वज्रनाभ ने किया था।
3. वास्तुशिल्प की अद्वितीयता
यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प के अद्वितीयता के लिए प्रसिद्ध है। इसे शानदार और सुंदरतापूर्वक निर्मित किया गया है, जो प्राचीन भारत की उत्कृष्ट शिल्पकला का प्रदर्शन करता है। इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 170 फीट है, जो कि इसे एक आकर्षक दृश्य बनाता है, जो आकर्षक वास्तुकला और मूर्तियों से सजा है।
4. मंदिर का निर्माण
विश्व प्रसिद्ध द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण चूना पत्थर से किया गया है और इसमें जटिल नक्काशी की गई है। यह 72 स्तंभों पर बनी 5 मंजिला मंदिर है।ऐसा कहा जाता है कि इस प्राचीन मंदिर मे प्रवेश करने के लिए दो द्वार हैं। एक है मोक्ष द्वार जो की उत्तर दिशा की ओर है और दूसरा है स्वर्ग द्वार जो कि दक्षिणी दिशा की ओर है।
और इस मंदिर के द्वारा के बाहर 56 सीढ़ियां हैं जो की गोमती नदी की और जाती है।
5. मंदिर की मूर्ति
अगर इस मंदिर की मूर्ति को देखें तो उनकी आंखें अधूरी दिखाई देती है और इसके पीछे भी एक कथा प्रचलित है। 15वीं शताब्दी की बात है जब हर जगह युद्ध का माहौल था तब इस मूर्ति का बचाव करने के लिए पंडितों ने इसे सावित्री नाम के कुएं में छुपा दिया था। इस घटना के कुछ साल बाद भगवान श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण के सपने में आकर एक विशिष्ट समय दिया कि वह इस मूर्ति को कूंए से निकाले।
भगवान कृष्ण की इस बात को सुनकर ब्राह्मण को रहा ना गया और सही समय की प्रतीक्षा किए बगैर उन्होंने वो मूर्ति बाहर निकाली, परन्तु उस मूर्ति की आंखें अधूरी बनी थी और यही मूर्ति आज द्वारकाधीश मंदिर में स्थापित है।
6. मंदिर पर लहराता झंडा
द्वारकाधीश मंदिर पर लहराता झंडा दिन भर में पांच बार बदल जाता है उस झंडे पर चंद्रमा और सूर्य बनाए गए हैं। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य और चंद्रमा भगवान से कृष्ण के प्रतीक है इसीलिए भगवान से कृष्ण के द्वारकाधीश मंदिर के शिखर पर चंद्रमा और सूर्य वाला ध्वज लहराता है।
और यह भी कहा जाता है कि जब तक चंद्रमा और सूर्य का अस्तित्व रहेगा तब तक भगवान श्री कृष्ण का इस मंदिर में वास रहेगा।
7. माता रुक्मणी का मंदिर
इस मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर भगवान श्री कृष्ण की पत्नी रुक्मणी का मंदिर है और भगवान कृष्ण और रुकमणी के अलग-अलग मंदिर होने के पीछे भी एक कथा प्रचलित है। जो कुछ इस प्रकार है- “एक समय जब भगवान श्री कृष्णा और उनकी पत्नी रुक्मणी ऋषि दुर्वासा से मिलने गए।
रुक्मिणी ने उन्हें अपने महल आने का आमंत्रण दिया जिसे स्वीकार ऋषि दुर्वासा ने एक शर्त पर किया वह शर्त थी कि जिस रथ में वह महल आएंगे उसे रथ को भगवान श्री कृष्णा और रुक्मणी खींचेंगे। भगवान श्री कृष्णा और रुक्मणी ने इस शर्त को बिना किसी संकोच के मान लिया ऋषि दुर्वासा भगवान श्री कृष्णा और रुक्मणी के साथ महल के लिए निकल पड़े।
शर्त के अनुसार श्री कृष्णा और रुक्मणी उस रथ को खींचना शुरू कर दिया। कुछ समय तक चलने के बाद रुक्मणी उसे रथ को खींचते हुए थक गयीं और उन्हें बहुत जोरों की प्यास लगी। जब श्री कृष्ण को यह बात पता चली तब उन्होंने अपने पैर के अंगूठे से जमीन में एक छेद कर दिया, जिसमें से मां गंगा का पानी निकलने लगा और उसे पानी से रुक्मणी माता ने अपनी प्यास बुझाई।
परंतु ऋषि दुर्वासा को यह बात पसंद नहीं आई की रुक्मणी ने उन्हें पानी पिलाने से पहले खुद पानी पी लिया। और उन्होंने अपने उग्र व्यवहार के कारण रुक्मणी को यह श्राप दिया वह और श्री कृष्णा अलग हो जाएंगे” और यही कारण है की रुक्मणी का मंदिर भगवान श्री कृष्ण के मंदिर से कुछ दूरी पर है।
8. द्वारका का पतन
धार्मिक महत्वता से जुड़े इस नगर के साथ कई रहस्य जुड़े हुए हैं- समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन हो जाने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार हैं।पहले माता गांधारी द्वारा भगवान श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शांभ को दिया गया श्राप।
महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय होने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को राजगद्दी पर बिठाया। और राज्य से जुड़े नियम कानून उन्हें समझा कर कौरवों की माता गांधारी से मिलने गए और भगवान श्री कृष्ण के आने पर माता गांधारी फूट-फूट कर रोने लगी और फिर क्रोधित होकर उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया कि- “जिस तरह तुमने मेरी कुल का नाश किया तुम्हारे कुल का भी अंत इसी तरह होगा”।
श्री कृष्ण साक्षात भगवान थे वह चाहते तो श्राप को निष्फल कर सकते थे लेकिन उन्होंने मानव रूप में लिए अपने जन्म का मान रखा और गांधारी को प्रणाम करके वहां से चले गए उसके बाद ही द्वारिका का पतन हो गया और यह साम्राज्य समुद्र में समा गया।
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