Jitiya Kab Hai 2025- जीवित्पुत्रिका व्रत यानी कि जितिया व्रत सोचिए न मां अपने बच्चों के लिए कितनी तपस्या करती है। सुबह-सुबह स्नान करके निराजल रहकर पूरे दिन उपवास रखना और फिर भगवान की पूजा करना। ये सब सिर्फ़ एक दुआ के लिए कि उनके बच्चे सही सलामत रहे, उनकी लंबी उम्र हो और उन्हें कभी कोई दुख ना छू सके।
अक्सर लोग कहते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत सिर्फ़ बेटे के लिए किया जाता है जो कि गलत है क्योंकि मां का प्यार बेटे और बेटी दोनों के लिए एक समान होता है और ये व्रत तो संतान के लिए ही रखा जाता है। चाहे वो मां का प्यार हो, दुलार हो, ममता हो वो तो दोनों के लिए ही एक समान है फिर वो बेटा हो या बेटी।
हर साल अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हर माएं Jitiya Vrat रखती हैं। जो सिर्फ एक व्रत नहीं मातृत्व प्रेम, ममता, त्याग , आस्था और समर्पण की अमर कहानी है। तीन दिन के इस पर्व की शुरुआत होती है नहाए खाएं से।
Jitiya Kab Hai 2025- जीवित्पुत्रिका व्रत, तिथि और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में, जीवित्पुत्रिका व्रत 14 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस व्रत का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है और यह तीन दिनों तक चलता है:
- पहला दिन (नहाय-खाय): 13 सितंबर, शनिवार
- दूसरा दिन (निर्जला उपवास): 14 सितंबर, रविवार
- तीसरा दिन (पारण): 15 सितंबर, सोमवार
यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 14 सितंबर को सुबह 5 बजकर 4 मिनट पर शुरू होगी और 15 सितंबर को सुबह 3 बजकर 6 मिनट पर समाप्त होगी। इसी कारणवश, व्रत 14 सितंबर को रखा जाएगा और इसका पारण 15 सितंबर को किया जाएगा।
व्रत का महत्व और पौराणिक कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत का संबंध जीमूतवाहन नामक एक महान राजा और एक चील तथा सियारिन की कथा से है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक जंगल में एक चील और एक सियारिन रहते थे। दोनों में गहरी मित्रता थी।
एक बार जब वे दोनों जीमूतवाहन देव की पूजा देख रहे थे, तब चील ने भी व्रत करने का संकल्प लिया, लेकिन सियारिन ने व्रत के नियमों का पालन नहीं किया। व्रत के दिन भूख लगने पर सियारिन ने चुपके से एक घर में जाकर भोजन ग्रहण कर लिया। वहीं, चील ने व्रत का कठोरता से पालन किया।
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समय बीतने के साथ, चील ने अपनी सभी संतानों को जीवित और सुखी पाया, जबकि सियारिन की सभी संतानें एक-एक करके मर गईं। सियारिन बहुत दुखी हुई और उसने चील से इसका कारण पूछा।
तब चील ने उसे बताया कि यह सब उसके द्वारा व्रत का पालन न करने के कारण हुआ है। सियारिन को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने पछतावा किया। चील ने उसे माफ कर दिया और अगले वर्ष दोनों ने मिलकर पूरी श्रद्धा से यह व्रत किया।
व्रत के प्रभाव से सियारिन की सभी संतानों को भी नया जीवन मिला। इस कथा से यह सीख मिलती है कि किसी भी व्रत का फल तभी मिलता है जब वह पूरी श्रद्धा और निष्ठा से किया जाए।
पूजा विधि और नियम
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Jitiya Vrat की पूजा विधि बहुत ही विस्तृत और नियम-निष्ठ होती है, जिसमें तीन दिन की परंपराएं शामिल हैं।
- नहाय-खाय: व्रत के पहले दिन, महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं। इस दिन सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है, जिसमें लहसुन, प्याज या मांसाहार का उपयोग नहीं होता। पारंपरिक रूप से इस दिन नोनी का साग और मड़ुआ (रागी) की रोटी खाई जाती है।
- व्रत का दिन: दूसरे दिन, माताएं निर्जला उपवास रखती हैं। इस दिन पूरे 24 घंटे अन्न और जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती। शाम के समय, पूजा की तैयारी की जाती है। जीमूतवाहन देव की प्रतिमा कुशा से बनाकर पूजा की जाती है। साथ ही, मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं। पूजा में विशेष रूप से खीरे, फल, और पूड़ी का भोग लगाया जाता है।
- पारण: तीसरे दिन, महिलाएं सुबह सूर्योदय के बाद पूजा करके व्रत का पारण करती हैं। पारंपरिक रूप से पारण में दही और पोहा (चूड़ा) खाया जाता है।
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कुछ विशेष बातें
- यह व्रत निःस्वार्थ प्रेम और त्याग का प्रतीक है।
- यह व्रत विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रचलित है।
- माना जाता है कि यह व्रत संतान के ऊपर आने वाले सभी संकटों से उसकी रक्षा करता है।
- गर्भधारण कर चुकी महिलाओं को यह व्रत नहीं करना चाहिए, क्योंकि निर्जला व्रत उनके और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
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