10 Life Lessons From Lord Shri Ram: चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि जन्म हुआ उनका जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम कहा जाता है। कहते हैं कि जब राजा दशरथ के पुत्र का नामकरण हो रहा था तो महर्षि वशिष्ठ जी ने राजा दशरथ से कहा-
“जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर ते त्रैलोक सुपासी।।
सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा।।”
अर्थात जो आनंद के समुद्र है सुख के राशि हैं जिस आनंद सिंधु के एक कड़ से तीनों लोक सुखी हो जाते हैं जो तीनों लोकों को आनंद देने वाले हैं, सुख के धाम है, आपकी सबसे बड़े पुत्र का नाम राम है। जब चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को प्रभु श्री राम का जन्म हुआ तब जो यह आनंद था, वह व्यक्ति से शुरू होकर प्रकृति तक चला गया।
कहते हैं की सरयू जी का जल बढ़ने लगा पवित्रता उसमें आने लगी वृक्षों में फल आ गए, तालाब भर गए, ना ज्यादा धूप थी ना ज्यादा ठंड थी, और वातावरण वातानुकूलित हो गया था। कुछ ऐसा था हमारे प्रभु श्री राम का स्वरूप कहते हैं कि अयोध्या में एक महीने तक रात्रि नहीं हुई। त्रेता युग में जब प्रभु श्री राम ने जन्म लिया तब इतना आनंद छा गया था कि इतना आनंदमय वातावरण कभी पहले नहीं हुआ था।
10 Life Lessons From Lord Shri Ram: जाने प्रभु श्रीराम के जीवन से जुड़ी 10 बातें, जो हमें सीखनी चाहिए।
वैसे तो प्रभु श्री राम से सीखने वाली अनंत बातें हैं पर आज हम आपको प्रभु श्री राम से सिखने वाली 10 शिक्षाएं आपको बताएंगे जो हमें अपने जीवन में उतारने चाहिए।
1. प्रभु श्री राम का एक वचन
अर्थात प्रभु श्री राम जिसे भी वचन दे देते हैं या कोई संकल्प कर लेते हैं तो उसे पूरा करने के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति लगा देते हैं इसीलिए कहा जाता है-
रघुकुल रीत सदा चली आई।
प्राण जाए पर वचन न जाई।।
हमें भी अपने जीवन में किसी भी कार्य को करने से पहले ये निश्चय कर लेना चाहिए कि किसी भी परिस्थिति में हम अपने कार्य को पूरा करेंगे और अपने कार्य को पूरा करने में पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए।
2. एक पत्नी को समर्पित होना
प्रभु श्री राम एक पत्नी को समर्पित थे। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने जीवन में एक ही महिला से प्रेम और विवाह किया था उन्होंने कभी भी दूसरी महिला के बारे में सोचा तक नहीं। प्रभु श्री राम माता सीता से अपार प्रेम करते थे और उनके बगैर एक पल भी नहीं रह सकते थे।
कहते हैं जब सीता हरण हुआ तब प्रभु श्री राम उनकी खोज में भटकते हुए रोते रहे और जब सीता मैया वाल्मीकि आश्रम में रहने के लिए चली गई तब प्रभु श्री राम ने भी महलों का सुख छोड़कर भूमि पर सोना प्रारंभ कर दिया था।
आज के जमाने में प्रभु श्री राम और माता सीता जैसा पति-पत्नी का रिश्ता कोई नहीं निभा सकता है परंतु आज रामनवमी के पावन अवसर पर हमें भगवान श्री राम से यह सीख लेनी चाहिए की किसी को भी गलत नजरिया से नहीं देखना चाहिए।
3. श्रीराम का शाकाहारी होना।
भगवान श्री राम शाकाहारी थे अयोध्या के राजा होने के बावजूद श्री राम जंगलों में इकट्ठा किया कंदमूल खाकर ही अपना गुजारा करते थे। और आज के जमाने में अगर कभी किसी को विदेश जाना पड़ जाता है तो अक्सर उन्हें उनके मन लायक भोजन नहीं मिलता है तो वह सहूलियत के लिए मांस खाना प्रारंभ कर देते हैं।
लेकिन वनवास के मुश्किल समय में भी श्री राम ने ना तो कभी मांस खाया और ना ही कभी मदिरा का सेवन किया वे राजसिक तथा तामसिक खान-पान से बचकर रहते थे। हमें भी शाकाहारी भोजन ही खाना चाहिए, जीव हत्या करके निर्दोष जानवरों का मांस नहीं खाना चाहिए।
4. भगवान राम तपस्वी थे
भगवान तपस्वीयों सा जीवन जीते थे। जब श्री राम ने वनवास धारण किया तब उन्होंने अपने सभी राजसी सुख त्याग दिए थे। वे जंगलों में कंदमूल खाकर रहते थे, उनके कोई सेवक भी नहीं थे और वह एक कुटिया में रहते थे। श्री राम के जीवन में ऐसे कई अवसर आए जब वह राजा बन सकते थे और राजसी जीवन जी सकते थे।
परंतु उन्होंने राज भोगों का कोई आमंत्रण स्वीकार नहीं किया। उन्होंने सदैव सादे जीवन को महत्वता दी। हमें भी कभी भी दिखावे में नहीं जीना चाहिए हमें सदैव सादा जीवन ही जीना चाहिए।
5. संयम और धैर्य
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम संयम और धैर्य की प्रतिमा थे और अपने वनवास जैसे कठिन समय में भी उन्होने संयम, संकल्प और साहस से जीवन जीने का उदाहरण प्रस्तुत किया। विपत्ति पड़ने पर भी उन्होंने कभी धैर्य और संयम नहीं खोया, वे आसानी से क्रोधित नहीं होते थे जबकि उनके छोटे भाई लक्ष्मण हमेशा क्रोधित हो जाते थे।
विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी प्रभु श्री राम ठंडे दिमाग से हल खोजते थे। हमें भी यह कोशिश करनी चाहिए कि चाहे कैसे भी परिस्थिति हो हमें अपने क्रोध को शांत करके ठंडे दिमाग से किसी भी परिस्थिति का हल निकालना चाहिए।
6. सेहतमंद बने रहना।
प्रभु श्री राम स्वयं अपने वैद्य थे, महलों में पलने के बावजूद उन्होंने वन में साधुओं की तरह तप और ध्यान किया। श्री राम लक्ष्मण और सीता के साथ अपनी 14 वर्ष के वनवास में पूरी तरह से सेहतमंद बने रहे उन्हें सभी तरह की जड़ी बूटियों का ज्ञान था और सेहतमंद रहने के लिए वे व्रत और योग किया करते थे।
हमें भी व्यस्त लाइफस्टाइल होने के बावजूद भी यह कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने आप को सेहतमंद रखें। अपनी सेहत का ध्यान रखने के लिए हमें अच्छा भोजन करना चाहिए और योग करना चाहिए।
7. योजना के साथ कार्य करना
श्री राम ने अपने जीवन का हर कार्य एक योजना के साथ संपन्न किया उन्होंने पहले ऋषि मुनियों को भय मुक्त करके उनका समर्थन हासिल किया और फिर सुग्रीव को राजा बनाया। लंका तक पहुंच पाना आसान कार्य नहीं था लेकिन वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्री राम ने वह स्थान ढूंढ निकाला जहां से आसानी से पुल बनाया जा सके।
रावण जैसा संपन्न और शक्तिशाली व्यक्ति और उसकी सेना से लड़ना आसान नहीं था लेकिन श्री राम ने अपनी साथियों के साथ योजना बनाई ताकि वह रावण को परास्त कर सके। यदि आपके पास कोई योजना नहीं है तो आप जीवन में अपने लक्ष्य को नहीं भेद सकते हैं।
8. सेवा और सहयोग
श्री राम ने अपने जीवन काल में सेवा और सहयोग के बहुत से कार्य किया उन्होंने ऋषियों को भय मुक्त किया और वनवास के समय लोगों के जीवन को सुधार करने का कार्य किया उन्होंने गरीब और पीड़ित लोगों की सहायता भी की।
उन्होंने सुग्रीव और विभीषण जैसे लोगों को भी अभय दान दिया। शबरी प्रसंग, केवट प्रसंग और अहिल्या प्रसंग से हमें यह जानकारी मिलती है कि उन्होंने कितने लोगों का उद्धार किया था।
9. रिश्तो का सम्मान
प्रभु श्री राम अपने सभी रिश्तों का सम्मान करते थे। वे अपने माता-पिता, भाई-बहन के साथ-साथ सभी बांधुओ और बांधवों से प्यार और उनका मान सम्मान करते थे। उन्होंने अपने हर रिश्ते को पूरे परिश्रम के साथ निभाया है यही कारण था कि परिवार का हर सदस्य उनसे स्नेह करता था और उनकी पीड़ा पर रोता था।
10. प्रभु अपने भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं।
श्री राम को उनके भक्त अति प्रिय है और वे अपने भक्तों का विशेष ध्यान रखते हैं प्रभु ने अपने मित्र भक्त और सहयोगियों का हमेशा उत्थान किया और उनके मनोकामनाओं को पूरा किया। श्री राम ने हनुमान और जामवंत को चिरकाल तक जीवित रहने का वरदान दिया और कहा कि “मैं तुमसे द्वापर युग में मिलूँगा और प्रभु ने अपना यह वचन भी निभाया था। प्रभु ने अपने किसी भी मित्र को कभी भी निराश नहीं किया।
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